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________________ प्रश्न-30. "प्रकाशमान बल्ब की गरमी के कारण उसकी बाहर की स्पर्श में आने वाले वायुकाय के जीवों की भी हिंसा होती है तथा रात्रि में लाईट के कारण आने वाले अनेक त्रसकाय के जीवों की भी विराधना होती है।''7 उत्तर-यदि बल्ब की गरमी के कारण बाहर की सतह पर स्पर्श में आने वाले वायुकाय के जीवों की हिंसा हो तो फिर किसी भी गर्म पदार्थ के कारण पात्र आदि के गर्म होने पर स्पर्श में आने वाली वायुकाय के जीवों की हिंसा माननी पड़ेगी। लाईट पर आने वाले त्रस जीवों की हिंसा लाईट जगाने वाले के प्रमाद से सम्बद्ध हैं । उसमें भी कृत, कारित, अनुमोदित, मनसा, वाचा, कायेन जुड़ने वाला दोषी होगा। (जैसा पंखे के विषय में बताया गया, वैसा यहाँ पर भी लागू होगा)। प्रश्न-31. जहाँ विद्युत् प्रवाह से न प्रकाश होता है या न तापमान तीव्र होता है, बल्कि केवल विद्युत् ऊर्जा का गति ऊर्जा में रूपान्तरण होता है, वहाँ सचित्त तेउकाय की विराधना या हिंसा होती है, ऐसा मानना कहाँ तक संगत है? उदाहरणार्थ- हाथ घड़ी। उत्तर- हाथ घड़ी में सेल से विद्युत्-प्रवाह घड़ी की इलेक्ट्रोनिक सिस्टम को संचालित करता है। इसमें कहीं भी अग्नि या तेउकाय का कोई लक्षण प्रगट नहीं होता। उस स्थिति में यह स्पष्ट है कि यह केवल (कोरा) पौदगलिक परिणमन ही है। सामान्य घड़ी जो स्प्रींग की यांत्रिक ऊर्जा से चलती है, वह सेल वाली घड़ी में विद्युत् की ऊर्जा से चलती है। यदि विद्युत् का यांत्रिक ऊर्जा में परिणमन मात्र ही सचित्त तेउकाय है, तो फिर शरीर में भी होने वाली यांत्रिक क्रिया को सचित्त तेउकाय मानना होगा। शरीर में विद्युत-ऊर्जा से संचालित गति आदि यांत्रिक क्रिया में जैसे कहीं भी तेउकाय की विराधना नहीं है, वैसे ही घड़ी में भी कहीं ऐसी विराधना नहीं होती, यह स्पष्ट है। प्रश्न-32. माईक के एम्प्लीफायर के ऊपर लगी हुई लाईट, आवाज के आरोहअवरोह के साथ जलती-बुझती है और उसमें ओर भी दूसरी लाइटें चालू होती हैं। इसके अलावा ट्रांजिस्टर्स, रेजिस्टर्स, डायोड्स इत्यादि भी उसमें लगे हुए होते हैं तथा माईक चालू हो तब उसमें से कुछ पार्टस तो बहुत गरम हो ही जाते हैं। ____ यह बात सिर्फ माईक के एम्प्लीफायर के विषय में ही नहीं किन्तु इलेक्ट्रीसिटी आधारित फोन (मोबाइल भी), फैक्स, कम्प्यूटर, केल्क्युलेर इत्यादि तमाम चीजों में समान रूप से लागू पड़ती है। इसमें ट्रांजिस्टर कितना भी छोटा क्यों न हो फिर भी वह गरमी का उत्सर्जन करता ही है। तुलसी प्रज्ञा जुलाई -दिसम्बर, 2004 - - 49 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524620
Book TitleTulsi Prajna 2004 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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