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अग्निकाय को अपना अस्तित्व बनाए रखने में ऑक्सीजन ही जरूरी है, ऐसा मानने की आवश्यकता नहीं है। ऑक्सीजन के अलावा दूसरे उपयोगी वायु से भी वह अपना अस्तित्व बनाए रख सकती है, ऐसा माना जा सकता है। शास्त्र में जो 'जहाँ अग्नि होती है, वहाँ वायु होता है' इतना बताया है। 'जहाँ अग्निकाय होता है, वहाँ ऑक्सीजन नामक वायु होता है' --- ऐसा नहीं बताया है। इसलिए 'ऑक्सीजन नहीं होने से बल्ब में अग्निकाय जीव उत्पन्न नहीं हो सकते'- ऐसा नहीं कहा जा सकता।
एक ओर महत्त्व की बात यह है कि नाइट्रोजन, आर्गन वगैरह उमदा वायु में ऑक्सीजन वायु का प्रमाण कुछ-न-कुछ मात्रा में होता ही है। यह बात 'विज्ञानकोशरसायन विज्ञान' 'विज्ञानकोश-रसायन विभाग, भाग-5, गुजरात युनिवर्सिटी ऑफ अहमदाबाद' नामक पुस्तक में डॉ. सी.बी. शाह (M.Sc., Ph.D.) द्वारा बताई गई है। उस ऑक्सीजन का शोषण हो सकता है, वह बात अलग है।
___ नाइट्रोजन वगैरह वायु उमदा-निष्क्रिय होने के कारण किसी भी उच्च तापमान पर भी स्वयं के इलेक्ट्रोजन नहीं गुमाते तथा लकड़े वगैरह की तरह नष्ट नहीं होते, इसलिए ही वह लम्बे समय तक बल्ब में प्रकाश-गरमी वगैरह को उत्पन्न करने में उपयोगी बन सकते हैं। यह बात विज्ञानकोश (भाग-5, पृष्ठ 412) पुस्तक में डॉ. (श्रीमती) एम.एस. देसाई ने स्पष्ट रूप से बतलाई है। इसके पूर्व (पृष्ठ 28) में बताए अनुसार फिलामेंट में आग न लग जाए, जल न जाए, इसके लिए बल्ब में नाइट्रोजन वगैरह उमदा वायु का अस्तित्व तो विज्ञान के सिद्धान्त के अनुसार भी सिद्ध होता ही है।
इस प्रकार से विचार करने में आए तो नाइट्रोजन और ऑर्गन नाम के वायु बल्ब में अग्निकाय को प्रकट करने में/उत्पन्न करने में सहायता करते हैं। कोई दूसरा स्थूल वायु यह कार्य नहीं कर सकता, ऐसा मान सकते हैं। मछली ऑक्सीजन के आधार पर जीवित रहती है किन्तु पानी में से ऑक्सीजन मिले तब ही वह उसे स्वीकार करती है। उसी प्रकार 'जहाँ अग्नि है, वहाँ वायु है'- यह बात सच्ची है। किन्तु बल्ब वगैरह में इलेक्ट्रीसीटी के माध्यम से जो अग्निकाय के जीव उष्णता और प्रकाश के रूप में उत्पन्न होते हैं, उनके अस्तित्व के लिए बाहर की खुली हवा प्रतिकूल है। पर एकदम पतली हवा, वायर वगैरह के माध्यम से मिलने वाली हवा अथवा नाइट्रोजन, ऑर्गन स्वरूप वायु ही उपयोगी बन सकते हैं, ऐसा कह सकते हैं। ऐसा मानने में कोई शास्त्रविरोध, साइन्सविरोध, अनुभवविरोध या युक्तिविरोध नहीं आता है।
विज्ञ वाचक वर्ग को यहाँ एक बात विशेष ध्यान में रखनी चाहिए कि 'विज्ञान के अनुसार बल्ब में रही हुई हवा के कारण बल्ब प्रकाशित होता है ' ऐसा मैं नहीं कहता। 'बल्ब को प्रकाशित करने में वायु उपयोगी है - ऐसा आधुनिक साइन्स मानती है', ऐसा
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- तुलसी प्रज्ञा अंक 125-126
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