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भी मैं नहीं कहता। मगर 'आगमानुसार अग्निकाय के लिए वायु जरूरी है'- ऐसा मैं बता रहा हूँ तथा फिलामेंट जल न जाए, इसके लिए आधुनिक साइन्स के सिद्धान्त के अनुसार, बल्ब में प्रविष्ट किए गए नाइट्रोजन वायु और ऑर्गन वायु वहाँ हाजिर हैं ही। अतः अग्निकाय के लक्षण बल्ब प्रकाश में दिखाई देने से तथा बल्ब में वायु विद्यमान होने से वहाँ आगमानुसार सजीव तेउकाय के उत्पन्न होने में किसी भी प्रकार का आगमविरोध नहीं आता । यही बताने का हमारा आशय है।
उत्तर - चाहे मनुष्य हो या मछली, चाहे फेफड़े से श्वास ग्रहण करें या झालरयुक्त फेफड़ों से- सभी जीवों को "ऑक्सीजन" ग्रहण करना ही पड़ता है— इस सत्य के आधार पर प्रश्न यही है कि क्या ऑक्सीजन के बिना भी अग्नि के जीव बल्ब में पैदा हो सकते हैं या जीवित रह सकते हैं?
निष्क्रिय वायुओं द्वारा अग्नि की प्रक्रिया विज्ञान द्वारा अस्वीकृत होते हुए भी उस संबंध में यह आग्रह कहाँ तक संगत होगा कि "ये वायु अग्नि प्रकट करने में सहायता करते हैं।" बल्ब की समग्र प्रणाली इतनी स्पष्ट है कि शंका का कोई अवकाश ही नहीं है। प्रस्तुत प्रश्न में उठाई गई बातों पर हम विस्तृत चर्चा कर चुके हैं। वायर के माध्यम से किसी भी प्रकार की वायु बल्ब तक नहीं पहुंच सकती।
दूसरी बात है-बल्ब को निरिन्धन अग्नि मानकर उसे ऑक्सीजन की जरूरत नहीं है, ऐसा मानने का कोई आधार नहीं है। पहले तो बल्ब को निरिन्धन अग्नि मानना ही गलत है। फिर उसके लिए ऑक्सीजन के सिवा अन्य कोई वायु की अपेक्षा मानना तथा उस वायु की पूर्ति तार के माध्यम से मानना-ये सारी विसंगत बातें हैं। फिर वापिस ओर्गोन या नाइट्रोजन में ऑक्सीजन का कुछ-न-कुछ मात्रा में होना मानकर ऑक्सीजन से ही उसकी पूर्ति करवाना--इसकी क्या आवश्यकता है?
विशुद्ध दशा में निष्क्रिय गैसों में ऑक्सीजन का शोषण शत-प्रतिशत करने की अक्षमता को मान भी लिया जाए तो आखिर वह ऑक्सीजन कब तक बल्ब के फिलामेंट को जलाएगा? ऑक्सीजन के साथ ज्वलन-क्रिया होते हुए भी बल्ब का फिलामेंट क्या अक्षुण्ण रह पाएगा?
पुनः ओर्गोन या नाइट्रोजन को ही बल्ब के फिलामेंट को जलने में सहायक बताना कैसे संभव होगा? जबकि ये वायु निष्क्रिय हैं। सत्य तो यही है कि
1. न पतली हवा का अस्तित्व बल्ब में है। 2. न वायर के माध्यम से कोई हवा वहां पहुंच सकती है। 3. न आर्गोन, नाइट्रोजन आदि को ग्रहण कर बल्ब जलता है।
तुलसी प्रज्ञा जुलाई-दिसम्बर, 2004 -
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