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उपलब्धि हो तो अग्नि पैदा कर सकता है, पर तांबे के तार (जो सुचालक है) में विद्युत्प्रवाह बहने पर सामान्य ताप भी बहुत कम होता है और प्रकाश नहीं होता। भीतर ऑक्सीजन का भी प्रवेश नहीं हो सकता। इसलिए वहाँ सचित्त तेउकाय के जीव उत्पन्न नहीं हो सकते। अचित्त के उदाहरण1. जहाँ ताप एवं प्रकाश है-सूर्य की रोशनी में ताप भी है, प्रकाश भी है पर वह
पौद्गलिक यानी -अचित्त ही है। 2. सूर्य की रोशनी से तप्त पृथ्वी अचित्त है। 3. कोयला आदि जलने के बाद बची हुई राख गर्म है, पर अचित्त है। 4. गर्म तवा या गर्म लोहा अग्नि का सम्पर्क छूट जाने के बाद अचित्त है। 5. गरमागरम भोजन अग्नि के संपर्क छूटने के बाद अचित्त है। 6. बादल की अवस्था में स्थित विद्युत् (Static-electricity) यानि ऋण विद्युत्
आवेश वाले बादल, घन विद्युत् आवेश वाले बादल सचित्त तेउकाय नहीं हैं। 7. बल्ब के अन्दर विद्यमान निष्क्रिय गैस या निर्वात में स्थित तन्तु कुण्डली
(Filament coil) में विद्युत्-प्रवाह प्रवाहित हो तो तब ताप व प्रकाश पैदा होता है, पर ऑक्सीजन के अभाव में वह अचित्त है। जलते अंगारे या आकाशीय
बिजली से यह भिन्न है। 8. डॉ. जे. जैन के अनुसार "भट्टी में पकती हुई ईंट या लोहे (लोह-अयस्क) में
साधारणतया अपचयन (reduction) होता है, ऑक्सीडेशन नहीं। सचित्त अग्नि में ऑक्सीडेशन होता है। भट्टी में जो लोह अयस्क हैं वह विज्ञान में FeO या Fe,0, है, उसमें विद्यमान ऑक्सीजन उसमें से निकलकर कोयले को जला सकती है। लेकिन इस प्रक्रिया में केवल कोयले के जलने में ही सचित्त तेउकाय माना गया है, जिस तरह साधारण चूल्हे या भट्टी में सचित तेउकाय है।"58
इसका कारण है कि कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं, जो उच्च तापक्रम पर भी पिघलते नहीं हैं। जैसे-जैसे उनका तापमान बढ़ता है, उनकी गर्मी बढ़ती जाती है, रंग बदलता है, अवरक्त किरणों से बढ़कर दृश्य प्रकाश का उत्सर्जन शुरू होता है। भट्टी में तो उसकी रिफ्रेक्टरी (Refactory) भी लगभग उसी तापमान तक गरम होती है, लेकिन उसमें से
तुलसी प्रज्ञा जुलाई-दिसम्बर, 2004
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