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________________ तब लोहे का ऑक्सीजन के साथ रसायनिक बंध होता है जिससे जंग यानी फेरस आक्साइड के रूप मे परिणमन होता है । किन्तु यह प्रक्रिया भी केवल सतही होती है। गोले के भीतर आर्द्रता का प्रवेश संभव नहीं है । ठोस, तरल और वायु या वाष्प रूप में पदार्थों का विभाजन इसी आधार पर है कि ठोस पदार्थ के भीतर दूसरे स्थूल पदार्थ (ठोस, तरल या वायु) का प्रवेश नहीं होता । यहाँ तक कि लोहे जैसे ठोस और अपारदर्शी पदार्थों में किरणों का भी प्रवेश भीतर नहीं होता, केवल सतह पर ही उनका प्रवेश होता है। 57 केवल भौतिक प्रक्रिया से यह संभव नहीं है । सर्वत्र आगम वचन की अपेक्षा को समझना जरूरी है। लोहे के अग्नि जीवों का अस्तित्व निरपेक्ष रूप में मानकर फिर यह कल्पना करना कि वायु का प्रवेश उसके भीतर होता ही होगा, न आगम-सम्मत है, न विज्ञान सम्मत, न तर्कसम्मत। मध्य भाग न्यूट्रोनों या ऊर्जा - तंरग या पारमाणविक (sub-stomic) कणों का प्रेवश ठोस पदार्थ में भी संभव हो सकता है। इसीलिए इलेक्ट्रोन, प्रोटोन, न्यूट्रोनों आदि कण अथवा उष्मा, प्रकाश इलेक्ट्रीसीटी, ध्वनि आदि ऊर्जा-तरंगों के ठोस पदार्थों में प्रवेश या निर्गम की संभावना सबको मान्य है, किन्तु इनसे अग्नि की क्रिया जिसमें ऑक्सीजन की अनिवार्यता है, नहीं हो सकती। आक्सीजन को छोड़कर अन्य वायु (नाइट्रोजन आदि) कहीं हो तो भी वे निष्क्रिय हैं, इसलिए अग्नि जलाने की क्रिया में अक्षम है। आगम के वचन - वायु के बिना अग्नि नहीं होती, की अपेक्षा को न समझने के कारण ही असंगत कल्पना करने की आवश्यकता पड़ती है। इसी प्रकार अग्नि में तपाए लाल गर्म लोहे के गोले को 'शुद्धाग्नि' के रूप में निरूपण को भी सापेक्षता के साथ समझना जरूरी है। अत्यधिक उच्च तापमान पर आक्सीजन का संयोग मिलने पर जलने की रासायनिक क्रिया या कंबश्चन की प्रक्रिया हो सकती है - इस सामान्य नियम के आधार पर सचित्त तेउकाय और अचित्त या पौद्गलिक प्रक्रियाओं का पृथक्करण आसानी से हो सकता है। सचित्त तेउकाय या अग्नि जलने की प्रक्रिया में ताप (ज्वलनबिंदु तक) प्रकाश, ज्वलनशील पदार्थ और ऑक्सीजन- ये चारों अनिवार्य हैं । अब यदि कोई ऐसा पदार्थ हो, जिसमें ताप हो, पर प्रकाश न हो तो उसे सचित्त तेउकाय की गणना में नहीं मान सकते। यही अन्तर बिजली के हीटर और बिजली के वाहक तांबे के तार में है। बिजली के हीटर में प्रयुक्त लोहे का तार विद्युत् प्रवाह के कारण गर्म भी होता है, लाल होकर प्रकाश भी करता है तथा खुली हवा के ऑक्सीजन के साथ मिलकर ज्वलनशील पदार्थ की तुलसी प्रज्ञा अंक 125-126 32 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524620
Book TitleTulsi Prajna 2004 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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