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________________ किन्तु जहाँ इन्हें आक्सीजन नहीं मिलती, वे जीवित नहीं रह सकते हैं, इसलिए गर्म लोहे का अग्नि के रूप में जीवित रहना तब तक संभव है जब तक अग्नि का संपर्क बना रहे तथा जब तक उन्हें प्राण-वायु प्राप्त होती रहे। इन दोनों में एक का भी अभाव होने पर ये अग्नि के रूप में जीवित रह नहीं सकते। लाल गर्म लोहे के भीतर तेउकाय का अस्तित्व इसी अपेक्षा से समझना होगा तथा सम्पर्क टूट जाने के पश्चात् उसे अचित्त तेउकाय के रूप में बताया गया है। मध्य भाग तक पहुचें हुए तेउकाय के जीव भी ऑक्सीजन न मिलने पर अग्नि का सम्पर्क बने रहने पर, दूसरे जीव मध्य तक पहुंच सकते हैं, पर ऑक्सीजन के अभाव में तुरन्त जीवित नहीं रह सकते। इसका तात्पर्य हुआ कि लोहे का गोला जब तक अग्नि में पड़ा रहेगा, तब तक यह श्रृंखला चालू रहेगी, संपर्क टूटते ही श्रृंखला टूट जायेगी। गोला 'अचित्त' बन जायेगा। आगम के व्याख्याकारों द्वारा उसे शुद्धाग्नि मानना तथा अग्नि के संपर्क से रहित होने पर अचित्त बताना, इस तथ्य को ही सिद्ध करते हैं कि हमें सचित्त तेउकाय के इस लक्षण को स्वीकार करना ही होगा कि सचित्त तेउकाय के जीव ऑक्सीजन के अभाव में जीवित नहीं रह सकते। गर्म गोले के मध्य भाग तक तेउकायिक जीवों का प्रवेश होना एक बात है, उनका जीवित रहना दूसरी बात है। नए-नए जीव प्रविष्ट होते रहें, तो मध्य भाग सचित्त तेउकाय के रूप में बताया जा सकता है, पर वह केवल इस अपेक्षा से कि तेउकायिक जीवों का धातु के मध्य भाग तक प्रवेश होता रहे, जो केवल अग्नि में धातु का रहना हो तभी संभव है। जैसे ही लोहे के गोले को अग्नि से बाहर निकाला जायेगा, जीवों का प्रवेश बंद हो जाएगा। गोला पुनः अचित्त हो जाएगा। ___ अब प्रश्न होता है-मध्य भाग तक ऑक्सीजन (वायु) जा सकती है या नहीं? इस विषय में निश्चिंतता के साथ कहने में कोई हिचक नहीं कि यह संभव नहीं है। केवल गोले का सतही हिस्सा ही ऑक्सीजन के सम्पर्क में रहेगा, शेष भाग में ऑक्सीजन का प्रवेश हो ही नहीं सकता। जब कांच के गोले में भी बाहर से ऑक्सीजन का प्रवेश नहीं होता, तो लोहे के गोले में उसका प्रवेश न विज्ञान स्वीकार करता है, न जैन दर्शन। विज्ञान और जैन दर्शन यह तो स्वीकार करते हैं कि ठोस से ठोस पदार्थ में सूक्ष्म पुद्गल स्कन्धों का प्रवेश संभव है, किन्तु ऑक्सीजन या प्राण-वायु का प्रवेश इसलिए नहीं हो सकता कि लोहे के परमाणु-गुच्छों (Molecules) के बीच रिक्त स्थान में ऑक्सीजन का परमाणु-गुच्छ प्रविष्ट नहीं हो सकता। यह तभी संभव है जब रासायनिक क्रिया हो, जो सामान्य स्थिति में नहीं होती। जंग लगने की क्रिया में होने वाली रासायनिक क्रिया में आर्द्रता का मोलीक्यूल (H,O)लोहे के मोलीक्यूल के साथ रासायनिक क्रिया करता है, तुलसी प्रज्ञा जुलाई-दिसम्बर, 2004 - - 31 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524620
Book TitleTulsi Prajna 2004 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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