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शुद्धाग्नि-अयस्पिण्डान्तर्गत ज्वाला-विरहित अग्नि या निरिन्धन अग्नि के रूप में प्रतिपादित है। यह भी अन्य अग्नि की तरह ही अग्नि में लोहे आदि को तपाने पर उत्पन्न होती है।
डॉ. जे. जैन के अनुसार अभिधान राजेन्द्र कोश पृष्ठ-2347 पर तेउकाय की व्याख्या में इन्हीं सब ग्रन्थों के आधार पर अग्नि काय के तीन प्रकार बताये हैं
1. सचित्त, 2. अचित, 3. मिश्र सचित्त के दो प्रकार है- 1. निश्चय 2. व्यवहार
निश्चय से सचित्त के उदाहरण हैं- ईंट की भट्टी या कुम्हार की भट्टी का मध्य भाग अथवा आकाशीय विद्युत् (lighting) ये अग्नियां उत्कट ताप, प्रकाश, ज्वलनशील पदार्थों की विद्यमानता तथा ऑक्सीजन के प्रयोग से प्रकट होती है। इनका अग्निकायिक स्वरूप स्पष्ट ही है।
व्यवहार सचित्त अग्नि में अंगारे, ज्वाला-रहित अग्नि आदि का समावेश है। मिश्र तेउकाय में मुर्मुर (अग्नि में से निकलने वाली चिनगारियां) आदि हैं।
अचित्त तेउकाय में - अग्नि द्वारा पके हुए भोजन, तरकारियां, पेय पदार्थ एवं अग्नि द्वारा तैयार की गई लोहे की सूई आदि वस्तुएं तथा राख, कोयला आदि अचित्त तेउकाय है। भगवती सूत्र, शतक 5, उद्देश्य 2 के अनुसार -
"भन्ते ! ओदन, कुल्माष और सुरा-इन्हें किन जीवों का शरीर कहा जा सकता है?" गौतम! ओदन, कुल्माष और सुरा में जो सघन द्रव्य हैं, वे पूर्व पर्याय-प्रज्ञापन की अपेक्षा से वनस्पति-जीवों के शरीर हैं। उसके पश्चात् वे शस्त्रातीत और शस्त्र-परिणत तथा अग्नि से श्यामल, अग्नि से शोषित और अग्नि-रूप में परिणत होने पर उन्हें अग्नि-जीवों का शरीर कहा जा सकता है। सुरा में जो द्रव द्रव्य हैं, वे पूर्व पर्याय-प्रज्ञापन की अपेक्षा से जल-जीवों के शरीर हैं। उसके पश्चात् शस्त्रातीत यावत् अग्निरूप में परिणत होने पर उन्हें अग्नि-जीवों को शरीर कहा जा सकता हैं।"
"भंते ! लोहा, तांबा, रांगा, सीसा, पाषाण और कसौटी-इन्हें किन जीवों का शरीर कहा जा सकता है?"
गौतम! लोहा, तांबा, रांगा, सीसा, पाषाण और कसौटी-ये पूर्व पर्याय-प्रज्ञापन की अपेक्षा से पृथ्वी-जीवों के शरीर हैं। उसके पश्चात् शस्त्रातीत यावत् अग्निरूप में परिणत होने पर उन्हें अग्नि-जीवों का शरीर कहा जा सकता है।" तुलसी प्रज्ञा जुलाई-दिसम्बर, 2004
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