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इंच ऊपर एक कोने पर तीन और अक्षर उत्कीर्ण हैं, इन्हें सम्वत् मान सकते हैं । लेख इस प्रकार है
ओम् आ /चार्य /इन्द्र नन्दि /शि /व्या /य है /द /रिपा /वां य /ति /स्य (ष्य) पौ /लै (ण)
अभिलेख की लिपि गुप्तकालीन ब्राह्मी है, अतः यह प्रतिमा छठी सदी के आसपास की कही जा सकती है।" प्रतिमा के ऊपर सम्वत् में तीन अक्षर क्रमशः 1, 5 और 9 पढ़ें जा सकते हैं। उस समय भारत के अधिकांश अभिलेखों में गुप्त सम्वत् प्रयुक्त हैं जो 319-20 ई. से आरम्भ किया गया है। जैसा कि गढ़वाल क पाण्डुकेश्वर से प्राप्त ताम्रपलों से पता चलता है। अत्यन्त दु:ख की बात है कि ये प्रतिमायें चोरी हो चुकी हैं। इस तरह इसमें आचार्य इन्द्रनन्दी के शिष्य तिष्य द्वारा अर्हत् परिपार्श्व के सम्मान में मूर्ति निर्माण की सूचना देने वाला लेख है। 24 प्रतिमायें, एक नारी प्रतिमा, फलक पर अंकित लेख, उत्कीर्ण सम्वत्, भाव भंगिमायें, वेशभूषा, अन्य पूर्वोक्त अवशेषों आदि से सिद्ध होता है कि कुमाऊँ में तीर्थंकरों का प्रभाव था। यद्यपि नारी प्रतिमा के विषय में अधिक विवरण नहीं मिल सका है।
बौद्धों द्वारा प्रार्थना, स्तुति, गाना बजाना और निराकार शक्ति को पुष्पादि सुगन्धित द्रव्य समर्पित करना वैदिक युगीन प्रकृति पूजा से मिलता था। बाद में बौद्ध पुजारियों ने इसमें तान्त्रिकता और पाशविक पूजा भी सम्मिलित कर ली। कुमाऊँ में कत्यूरी राजवंश का शासन रहा है। इससे सम्बद्ध अनेक जनश्रुतियाँ, लोकपरम्परायें और अभिलेखीय साक्ष्य हैं। उनकी राजधानी कत्यूर आधुनिक गरुड़ वैजनाथ घाटी थी। कत्यूरी राजाओं के बौद्ध धर्म के अनुयायी होने के कारण (राजधर्म-होने से) आठवीं सदी तक कुमाऊँ में बौद्ध धर्म होने के अनेक प्रमाण मिलते हैं, इन प्रमाणों पर प्रकाश डालने का प्रयास किया जा रहा है।
ह्यन सांग भारत के इस क्षेत्र में भी आए थे और उन्होंने बौद्ध धर्म के यहाँ होने का वर्णन किया है जबकि वे इस क्षेत्र में जैन धर्म के प्रभाव के बारे में मौन हैं, कनिंघम की पुस्तक के अनुसार ह्यनसांग (चीनी यात्री युवान चांग) 643ई. में गोविषाष नगर में आया। आधुनिक काशीपुर का नाम तब गोविषाण था और यह "सुघ्न" राज्य कालसी (देहरादून) का एक भाग था। यह राजधानी 21/2 मील (4 किलोमीटर) की गोलाई में
तुलसी प्रज्ञा जुलाई-दिसम्बर, 20040
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