________________
अल्मोड़ा जिले में लमगड़ा से करीब 5 किलोमीटर बमनसुयाल में कुछ प्राचीन मन्दिर प्रकाश में आए। इन मन्दिरों के अतिरिक्त यहाँ कुछ महत्त्वपूर्ण पाषाण प्रतिमायें भी हैं। इनमें से एक अल्मोड़ा के जनपदीय पुरातत्त्व संग्रहालय में प्रदर्शित है जिसे जैन तीर्थंकर नेमिनाथ की माना गया है। खण्डित यज्ञ सहित कुछ तीर्थंकरों की प्रतिमायें पर्वत चोटियों पर मिलती हैं। अल्मोड़ा जिले के द्वारहाट के कालीखोली के पास वन के बीच में प्रस्तरखण्ड पर बनी प्रतिमा है। सम्भवतः यह पार्श्वनाथ की है।' गोएट्ज के अनुसार जैन अभिरुचि के अनुसार निर्मित गूजर देवल (ध्वज) मन्दिर द्वारा हाट नगर और उसके आसपास जैनधर्म के अस्तित्व का प्रमाण है। यह गुजरात के माउण्ट आबू और राजस्थान के जैनमन्दिरों के समान बना है।'
सन् 1958 ई. में नैनीताल के नैनादेवी मन्दिर की सफाई और खुदाई की गयी थी। उस समय तीर्थंकरों की एक मथुरा शैली की मूर्ति मिली थी। लाल बलुबा पत्थर की बनी इस मूर्ति के पार्श्व में गुप्तकालीन ब्राह्मी लिपि में मूर्ति निर्माण की सूचना देने वाला एक लेख भी अंकित था। सफाई करते समय सिन्दूर की मोटी तह के हटते ही प्रतिमा स्पष्ट दिखायी दी। यह प्रतिमा 211/2 इञ्च लम्बी, 81/2 इञ्च चौड़ी और करीब 4 इञ्च मोटी है। अग्र शिलापट्ट पर 25 मानव आकृतियाँ खंचित हैं। पहली आकृति का सिर कुछ टूट गया है।
प्रत्येक आकृति लगभग दो इञ्च लम्बी है। पहली पाँच पंक्तियों में से प्रत्येक में चार-चार आकृतियाँ हैं और छठी पंक्ति में पाँच हैं। वेशभूषा की दृष्टि से अन्तिम नारी आकृति को छोड़कर सभी मूर्तियाँ नग्न और कायोत्सर्ग (काउस्सग) मुद्रा में अंकित हैं। लम्बे झूलते हुए हाथ, तरुण और स्वस्थ शरीर, रूप भास्वरता, तमो नग्नता इन प्रतिमाओं की निजी विशेषतायें हैं। ये चौबीस नग्न पुरुष आकृतियाँ जैनों के चौबीस तीर्थंकरों की हैं। सातवें तीर्थंकर सुपार्श्व (दूसरी पंक्ति में तीसरी प्रतिमा) और 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ (अन्तिम पंक्ति की तीसरी प्रतिमा) के अस्तित्व सभी मूर्तियाँ समान हैं, सिर पर अंकित सात नागफणों के कारण ये दो प्रतिमायें सबसे अलग लगती हैं। ओजस्वी ललाट, मुख पर मृदुल आनन्द की आभा और आत्मीय शान्ति की व्यञ्जना इन प्रतिमाओं की अपनी विशेषता है। मूर्तियों के नीचे उनके विशिष्ट प्रतीक अंकित नहीं हैं। ऐसा मध्ययुगीन जैन मूर्तियों में अपवादरहित रूपेण मिलता है।
जिस फलक पर तीर्थंकरों की प्रतिमायें हैं, उस पर दाहिनी ओर 5 इंच लम्बे और 3.5 इंच चौड़े भाग में एक शिलालेख है। प्रथम पंक्ति में “ओम्' सहित 6, दूसरीतीसरी-चौथी पंक्तियों में प्रत्येक में पांच और अन्तिम में एक अक्षर है। प्रथम पंक्ति से 4
18 |
-
तुलसी प्रज्ञा अंक 125-126
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org