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थी। यह भूमि ऊँची, मजबूत और कठिनता से पहुँचने योग्य थी। यह स्थान, बागों, तालाबों और मछली के कुण्डों से घिरा था। यहाँ 30 ब्राह्मण धर्म के मन्दिर और दो मठ थे। इनमें 100 साधु थे। नगर के बाहर बड़े मठ में 200 फीट ऊँचा अशोक का स्पूत था, वहाँ महात्मा बुद्ध ने लोगों को धर्मोपदेश दिया था। वहाँ एक स्तूप में बुद्ध के नख और बाल थे। इसके दाहिनी ओर वाले स्तूप में सारिपुत्र और बायीं ओर वाले स्तूप में मौदगलायन के बाल और नाखून सुरक्षित हैं । यहाँ अन्य बौद्ध अर्हतों के बहुत से स्तूप हैं। तथागत के निर्वाण के बहुत समय बाद यहाँ बौद्धधर्म समाप्त प्रायः हो चुका था। शंकराचार्य के समय से तो बौद्ध धर्म का प्रभाव शून्य हो गया था। किन्तु इससे पहले तथागत के निर्वाण के उपरान्त बहुत समय बाद की बात है, उस समय देश के अन्य स्थानों से आकर बौद्ध विद्वानों ने अन्य धर्मों और मतों के आचार्यों को शास्त्रार्थ, वाद-विवाद में पराजित किया एवं इस विजय के उपलक्ष्य में पाँच विहारों का निर्माण किया। इस देश (स्थान) में सौ देवमन्दिर हैं।” दुर्भाग्यवश अब कम देखने को मिलते हैं।
"रामेश्वर माहात्म्य" में चम्पावत के बालेश्वर मन्दिर के पास एक बौद्ध तीर्थ का उल्लेख है। विद्वानों के विचारानुसार यह आधुनिक चम्पावत जिले का घटकेश्वर मन्दिर होना चाहिए। हल्द्वानी और टनकपुर के बीच में स्थित "सीनापानी" में कुछ वर्ष पूर्व एक बौद्ध स्तूप के खण्डहर मिले हैं, मार्गक्रम इस तरह है- हल्द्वानी-चोरगलियाद्योलासाल-पीला पानी (भौरियासिमल) दुगाड़ी-सेनापानी-कलौनीद्दिन-टनकपुर । पीलापानी से दक्षिण की ओर कुछ दूर सुदलीमठ की वन चौकी है। पिथौरागढ़ के ग्रामदेवता "ऐडी" का मूल स्थान जो दुगाड़ी से उत्तर की ओर एक ऊँची पहाड़ी ब्यानधुरा कही जाती है।” कुमाऊँ में ग्राम देवताओं को जागृत (जागर) करने के लिए कथा (जागर) कहने की परम्परा है। ऐडी देवता के जागर में कुमाऊँ में मुगल आक्रमण का उल्लेख है। सम्भवतः सेनापानी और सुदलीमठ के बौद्धस्तूप उस समय नष्ट हुए होंगे। सेनापानी के एक लाल बलुवा पत्थर के स्तम्भ का खण्ड नैनीताल के इतिहास विभाग के संग्रह में हैं। काली कुमाऊँ (चम्पावत) में गोरखनाथ और ढेरनाथ के भी मन्दिर हैं। गोरखनाथ कनफटे साधुओं के गुरु और शिव के अवतार माने जाते हैं। यह 15वीं सदी में हुए थे। इनके गुरु मत्स्येन्द्र (मछीन्द्र) नाथ थे। ये बौद्ध कहे जाते हैं पर बाद में सनातनी हो गए थे।
अल्मोड़ा जिले के वैजनाथ में (आधुनिक नाभ गरूड-वैजनाथ) कत्यूरी शासकों की राजधानी कत्यूर के अवशेष विद्यमान हैं। कत्यूरी नाम प्रो. डी.सी. सरकार के अनुसार कर्तृपुर या कार्तिकेयपुर से लिया गया है। सम्भवतः इसी से इस घाटी का नाम 20 -
- तुलसी प्रज्ञा अंक 125-126
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