________________
डॉ. बिहारी छाया” अपने "बिजली" के विषय में लिखित लेख में बताते हैं
बादल के नीचे के हिस्से में जमा हई ऋण-विद्युत् पृथ्वी की सतह पर जमा धन विद्यत द्वारा आकृष्ट होती है। इस आकर्षण के फलस्वरूप बादलों में से नीचे की ओर ऋण विद्युत् आवेश का एक प्रवाह बहता है और पृथ्वी की सतह के ऊपर की ओर धन विद्युत् प्रवाह बहता है। इन दोनों का संयोग हवा के मध्य में ही हो जाता है। उस समय तीव्र धन विद्युत् आवेश प्रकाश के वेग के तीसरे (1/3 x 3 लाख किलोमीटर/सैकण्ड) अर्थात् लगभग एक लाख किलोमीटर प्रति सैकिण्ड के वेग से गति करता हुआ दिखाई देता है। इसकी वजह से गगन में तीव्र प्रकाश की रेखा या चमक देखने को मिलती है, जिसे हम "बिजली चमकी" ऐसा कहते हैं। बिजली की एक चमक में जो विद्युत् प्रवाह बहता है, वह 20 हजार के 40 हजार एम्पियर के बराबर शक्तिशाली होता है। समझने के लिए तुलना की जाय तो 1000 वोट पावर वाले बिजली के बल्ब में केवल लगभग 4 एम्पियर का विद्युत् प्रवाह ही बहता है। जो दो बिंदु के बीच यह विद्युत् पैदा होती है, उनका इलेक्ट्रीक दबाव लगभग 20 करोड़ वोल्टेज जितना होता है। इस प्रकार 20 हजार से 40 हजार एम्पियर का विद्युत्-प्रवाह 20 करोड़ वोल्ट के विद्युत् दबाव के बीच एक तीव्र प्रकाश की चमक या रेखा “बिजली" (Lightning) है। (तुलना के लिए गृह-कार्य में प्रयुक्त विद्युत् का वोल्टेज केवल 250 वोल्ट ही होता है।) जिस समय बिजली चमकती है उस समय जो उष्मा-ऊर्जा का विकिरण होता है, उससे वहां का तापमान बढ़कर इतना तीव्र हो जाता है जो सूर्य के सतह के तापमान से भी चौगुना हो जाता है। ऐसी प्रचंड बिजली का अस्तित्व केवल एक सैकिण्ड के हजारवें अंश जितने समय तक ही रहता है।
__यदि इतना तीव्र विद्युत्-प्रवाह किसी प्राणी या मनुष्य के शरीर में प्रविष्ट हो जाए तो शरीर के समस्त ज्ञानतंतुओं और समस्त रक्तवाहिनियों की सर्कीटें जो मस्तिष्क और हृदय के साथ जुड़ी हुई हैं, शीघ्र प्रभावित हो जाती हैं। इससे हृदय की धड़कन रुक जाती है और ज्ञानतंतुओं पर पड़ने वाले प्रभाव से श्वासोच्छ्वास की प्रक्रिया रुक जाती है। बहुत बार श्वासोच्छ्वास पुनः चालू न होने से व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। यदि अति तीव्र विद्युत्-प्रवाह प्रवेश कर ले तो नर्वस सिस्टम की समग्र तंत्रिका-कोशिकाएं (न्यूरोन्स) नष्ट हो सकती हैं। कभी-कभी संयोगवश विद्युत्-प्रवाह की कुछ मंदता के कारण सारी तंत्रिका-कोशिकाएं नष्ट नहीं होती पर उनमें सूक्ष्म छिद्र हो जाते हैं यानी क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। तड़ित्-विद्युत् एवं अशनिपात को तेउकाय क्यों कहा गया ?
डॉ. जे. जैन एवं डॉ. बिहारी छाया तथा भौतिक विज्ञान की पाठ्य पुस्तकों के उपर्युक्त उद्धरणों से यह स्पष्ट होता है कि
48
-
तुलसी प्रज्ञा अंक 122
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org