________________
अवरोध होता है वहां कड़क कर धरती पर गिरता है, इसे ही वज्रपात या बिजली का कड़कना (Thunderbolt) कहा जाता है। आगमों में यह " अशनिपात" के नाम से अभिहित है ।
जमीन की सतह की खास परिस्थितियों में विलोम कड़कती बिजली भी पैदा होती है, जिसमें ऋण विद्युत्-आवेश पृथ्वी से बादल की ओर कड़कती बिजली के रूप में दौड़ पड़ते हैं। यह नजारा आमतौर पर निम्न अक्षांश वाले क्षेत्रों में पाया जाता है, जैसे- इंडोनेशिया, दक्षिण अमरीका, मध्य अफ्रीका आदि ।
तडित् -विद्युत् की संरचना :
1. जो कड़कती बिजली हमें आकाश में दिखाई देती है, वह विखंडित हवा और गैस है। गैस की परत के दोनों तरफ जब विद्युत्-आवेश (Voltage) अति उच्च हो जाता है तो वो गैस की विद्युत्रोधी शक्ति में छिद्र पैदा कर देता है। उस अति उच्च वोल्टेज से गैस आयनीकृत होकर प्लाज्मा बन जाती है जो विद्युत्-चाप के रूप में प्रकट होती है । विद्युत्-चाप रूपी प्लाज्मा एक लचीला सुचालक है। पलक झपकते ही बादल की पूरी वोल्टेज निरावेशित (मुक्त) हो जाती है।
2. विद्युत् - चाप रूपी यह प्लाज्मा पदार्थ की चतुर्थ अवस्था होती है। आयनीकरण के कारण इस प्लाज्मा का तापक्रम हजारों डिग्री ( 300000°c ) तक बढ़ जाता है। इसके भीतर गैसें ऋण व धन आयन के रूप में विखण्डित होकर विद्युत् प्रवाह बनाती है। जो एक कौंध के रूप में एक सिरे से दूसरे सिरे तक बहु- शाखित या लहरिया - बिजली के समान बहकर उच्च वोल्टेज को पूरा खिंचाव रहित कर देती है। यह कौंध एक ही बादल के अंदर, दो बादलों के बीच में या बादल और धरती के बीच हो सकती है।
3. इस गर्म प्लाज्मा में ऑक्सीजन, नाइट्रोजन और जल वाष्प आदि के आयन रहते हैं। इनसे प्रकाश के फोटोन का विकिरण होता है। यह इलेक्ट्रो-मेग्नेटिक विकिरण उच्च ताप व प्रकाश के अलावा उच्च दबाव की भयंकर ध्वनि / गर्जन पैदा करता है। क्षणिक विद्युत्चाप के समाप्त होते ही जब वोल्टेज शून्य रह जाता है, तब निस्तेज गैसें वापिस यौगिक रूप में प्रकट होती हैं । इस प्लाज्मा की उपज के रूप में ओजोन गैस तथा नाइट्रोजन आदि के अन्य ऑक्साइड और अन्य यौगिक पदार्थ पैदा होते हैं। इस प्रक्रिया से हर साल 3 करोड़ टन तक स्थिरीकृत नाइट्रोजन बनती है ।
इस विद्युत्-चाप से कभी - कभी ऐसे आग- गोले बन जाते हैं जो द्रुतगति से चलकर पृथ्वी में समा जाते है तथा रास्ते की वस्तुओं को जला डालते हैं। साधारण विद्युत्-चाप (वज्रपात) जो आकाश से पृथ्वी पर गिरता है, वो भी रास्ते में पड़ी वस्तुओं को अपनी तीव्र गर्मी व ऊर्जा के कारण झुलसा कर जला डालता है। "
तुलसी प्रज्ञा अक्टूबर-दिसम्बर, 2003
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
47
www.jainelibrary.org