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________________ वाले कण तथा 2 से 3 किलोमीटर तक ऋण आवेश वाले कण बादलों में जमा होते जाते हैं। डॉ. जे. जैन ने इस पूरे क्रम को इस रूप में प्रस्तुत किया है-108 "जब वर्षा के बादलों में आंशिक जमे हुए पानी व बर्फ के रवों के बीच आपसी टक्कर होती है तो उस घर्षण से धन और ऋण आवेश (चार्ज) पैदा होते हैं। यह चार्ज पैदा करने की प्रक्रिया उसी प्रकार होती है जैसे एक कमरे में गलीचे पर चलने से किसी खास शुष्क दिवस में शरीर पर स्थिर चार्ज पैदा हो जाते हैं । ये चार्ज उस आदमी को झटके के रूप में महसूस होंगे जब वह दरवाजे की कुंडी को छूता है। (ii) चुम्बकीय क्षेत्र में वाष्प के बादल जब ज्यादा गति से घूमते हैं तो उनमें बिजली का चार्ज पैदा होने की संभावना हो सकती है। यह उसी प्रकार होता है, जैसे एक जेनेरेटर में रोटर पर चार्ज पैदा होते हैं। (iii) आम तौर पर ऋण चार्ज मध्य या निचली सतह पर इकट्ठे होते हैं तथा धन चार्ज (अणु या आयन) ऊपर उठ कर उस बादल की ऊपरी सतह पर इकट्ठे होते रहते हैं। (iv) चार्ज पैदा होने की गति निर्भर करती है (1) बादलों की विभिन्न परतों की सापेक्षिक गति पर, (2) अवशीतन की मात्रा पर (3) आंशिक जमे हुए पानी व पूर्णत: जमे हुए बर्फ के अनुपात पर (4) बादल की अंदरूनी हलचल की मात्रा पर। अवशीतन की गति व मात्रा निर्भर करती है ऊपर उठती हुई गर्म हवा की धारा की गुणवत्ता व तीव्रता पर। गुणवत्ता का मतलब है नमी की मात्रा तथा नमी से सने हुए रज-कण से। (v) चार्ज की मात्रा : वोल्टेज यह निर्भर करती है बादल के उस हिस्से की मोटाई व चालकता पर जिससे वो धन और ऋण चार्ज को अलग-अलग बांट कर रखती है। जैसे ही विद्युत्-आवेशों का अंतर (Potential difference) एक सीमा को पार करता है, तो बादलों की विद्युत्-विरोधी शक्ति यकायक टूट जाती है। उस समय बादल व हवा अपनी कुचालकता से उन विपरीत विद्युत्-आवेशों को मिलने से नहीं रोक सकती। उसका नतीजा यह होता है कि ऋण आवेश का टूटता हुआ पहाड़ "डीस्चार्ज" के रूप में बादल में कौंध जाता है जिसे हम तड़ित-विद्युत् (Lightning) या "बिजली का चमकना" कहते हैं। बादलों के नीचे के हिस्से में जो ऋण-विद्युत् आवेश हैं, वे प्रेरण (Induction) द्वारा जमीन पर धन विद्युत्-आवेश उत्पन्न करते हैं । यद्यपि बीच में मौजूद उठती हुई वाष्प से लदी हवा इन दोनों विपरीत विद्युत्-आवेशों को पृथक् रखने की कोशिश करती है पर जब वाल्टेज अत्यंत तीव्र हो जाता है, तब उसे पार कर भारी विद्युत् डीस्चार्ज जमीन की ओर जहां न्यूनतम 46 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 122 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524617
Book TitleTulsi Prajna 2003 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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