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________________ जब वातावरण से टकराती हैं तब वातावरण में मौजूद हवा एवं अन्य गैसों का आयनीकरण हो जाता है। आयनीकरण से तात्पर्य है कि परमाणु से इलेक्ट्रोन (या पोजीट्रोन) वियुक्त हो जाते हैं, जिससे परमाणु स्वयं + (धन) अथवा - (ऋण) आवेश वाला बन जाता है। आयनीकृत हवा या गैस विद्युत् की सुचालक बन जाती है। ज्यों-ज्यों 'वातावरण' में ऊपर जाते हैं, त्यों-त्यों विद्युत् की सुचालकता बढ़ती जाती है। स्ट्रेटोस्फीयर के ऊपर के स्तर पर यानी उसके शिखर पर सारा 'वातावरण' अत्यन्त तीव्र सुचालक बन जाता है। (यह पृथ्वी से लगभग 60 किलोमीटर ऊपर घटित होता है ।) पृथ्वी की सतह और स्ट्रेटोस्फीयर के ऊपर के स्तर के बीच इलेक्ट्रीक प्रक्रिया संभव बन जाती है। चूँकि ये दोनों सुवाहक हैं। इनके बीच वोल्टेज का अन्तर विद्युत्-बल का कार्य करेगा। जो बादल बहुत ऊपर होते हैं, उनमें पानी वाष्प के रूप में ही होता है, पानी के कण के रूप में नहीं। ये बादल सामान्य वातावरण की हवा की तरह इलेक्ट्रीसीटी के कुचालक नहीं होते । पृथ्वी की सतह पर जो इलेक्ट्रीक पोटेंशियल होता है, उसका और बादलों के नीचे के हिस्से में एकत्रित इलेक्ट्रीक पोटेंशियल के बीच जो फर्क (Potential difference) है, वह जबरदस्त मात्रा में – लगभग 2 करोड़ से 20 करोड़ वोल्ट जितना हो सकता है। इसकी वजह से तीन किलो मीटर मोटी वातावरण की पट्टी में एक जबरदस्त विद्युत् क्षेत्र प्रवर्तित होता है। इस क्षेत्र की दिशा ऊपर की ओर होती है । इस क्षेत्र के बीच की हवा का आयनीकरण हो जाता है, जिससे वह सुचालक बन जाती है। प्राकृतिक तूफान (Thunder storm ) हमारी पृथ्वी पर मौसम के परिवर्तन की प्रक्रिया चलती रहती है। इसके फलस्वरूप मेघ - निर्माण, हवामान तथा हवा के दबाव में उथल-पुथल, तापमान का अन्तर, हवा में धूली कणों का एकत्रीकरण आदि ऐसे कारक हैं जो निरन्तर प्राकृतिक तूफानों के निमित्त बनते रहते हैं। पृथ्वी के चारों ओर के वातावरण के परिणमनों के कारण प्रतिदिन 40000 प्राकृतिक तूफान या तडित् -झंझा (Thunder srorm) कहीं-न-कहीं, किसी-न-किसी रूप में उठ खड़े होते हैं, जिनमें गर्जन और विद्युत् (Lightning) का क्रम चलता रहता है । औसतन प्रति दो सैकण्ड में विश्व में कहीं-न-कहीं ऐसा तूफान आता रहता है और इस तूफान की अवधि औसतन एक घंटे की होती है। इन तूफानों के दौरान स्ट्रेटोस्फीयर और पृथ्वी के बीच जो इलेक्ट्रीक चार्ज का आदान-प्रदान होता है, उसके परिणामस्वरूप ही पृथ्वी एवं वातावरण की विद्युत्-स्थिति को बनाए रखना संभव होता है अन्यथा विद्युत् का असंतुलन पृथ्वी के लिए खतरनाक सिद्ध हो सकता है। 107 (i) जब तूफान की स्थिति बनती है, तब ऊपर 6 किलोमीटर तक धन विद्युत् आवेश तुलसी प्रज्ञा अक्टूबर-दिसम्बर, 2003 Jain Education International For Private & Personal Use Only 45 www.jainelibrary.org
SR No.524617
Book TitleTulsi Prajna 2003 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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