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________________ लग रहा है कि ऑक्सीजन के साथ ज्वलनशील पदार्थ के रासायनिक संयोग और उष्मा के विकिरण की प्रक्रिया कंबश्चन है तथा उसके मूल में अभिक्रिया में भाग लेने वाले पदार्थों का "आयनीकरण" जिम्मेवार है। __ इस प्रकार अग्नि एक रासायनिक प्रक्रिया है। इसकी पारिभाषिक संज्ञा है - कंबश्चन या दहन क्रिया। इसकी स्पष्ट परिभाषा इस प्रकार है - दहन-क्रिया का अर्थ है ज्वलनशील पदार्थों (इंधन) का ऑक्सीजन के साथ रासायनिक संयोग तथा उष्मा का उत्सर्जन। कंबश्चन में प्रयुक्त इंधन (ज्वलनशील पदार्थों) को परिभाषित एवं व्याख्यायित करते हुए बताया गया है-"इंधन वह पदार्थ है जो जलाने पर यानी आक्सीजन के सम्पर्क में आने पर और उसके साथ रासायनिक अभिक्रिया करने पर उष्मा पैदा करता है । इंधन में निम्नलिखित ज्वलनशील मूल तत्त्वों में से एक या अनेक का होना अनिवार्य है - कार्बन, हाइड्रोजन और हाइड्रोकार्बन। 186 इंधन या ज्वलनशील पदार्थ तीनों अवस्थाओं के हो सकते हैं - ठोस, तरल या गैस (वायु)।” दहन-क्रिया एक प्रकार की रासायनिक अभिक्रिया होने से यह क्रिया उतनी ही शीघ्रता से तथा तीव्रता से हो पाती है जितनी उसमें भाग लेने वाले सभी पदार्थों (कार्बन, आक्सीजन आदि) के बीच सम्पर्क की निकटता होती है तथा उसका सम्पर्क क्षेत्र विशाल होता है अर्थात् ज्वलनशील पदार्थों का ऑक्सीजन के साथ संयोग कंबश्चन सहित सभी प्रकार की रासायनिक अभिक्रियाएं उक्त सिद्धान्त के आधार पर होती हैं। ज्वलनशील पदार्थ चाहे गैस, तरल या ठोस-अवस्था में हो सकते हैं पर शुद्ध ऑक्सीजन या ऑक्सीजन-युक्त हवा (वायु), जिससे कंबश्चन होता है, तो हमेशा गैस अवस्था में ही होनी चाहिए।" ठोस इंधन या ज्वलनशील पदार्थों में प्राकृतिक ईंधन के रूप में लकड़ी, कोयला, लिग्नाइट आदि का प्रयोग होता है। तरल पदार्थों में पेट्रोल तथा गैसीय पदार्थों में प्राकृतिक गैसों का प्रयोग होता है। वैज्ञानिकों ने पदार्थों को दो प्रकार में बांटा है1. ज्वलनशील (Combustible) 2. अज्वलनशील (Incombustible) लकड़ी, कोयला, घी, तेल, रसोई में प्रयुक्त गैस, घास, रूई, कपड़ा, कागज आदि ज्वलनशील पदार्थ हैं। इनमें भी पैट्रोल, केरोसीन, डीजल आदि अतिज्वलनशील (highly inflammable)हैं। दूसरी और राख, धूल, मिट्टी, पत्थर, पानी आदि अज्वलनशील हैं। वायुओं में कार्बनडाई ऑक्साइड (Co,) जैसी वायु भी अज्वलनशील है। इन सबका प्रयोग अग्निशामक पदार्थ के रूप में किया जाता है। तुलसी प्रज्ञा अक्टूबर-दिसम्बर, 2003 - 33 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524617
Book TitleTulsi Prajna 2003 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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