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________________ अधिकांश ज्वलनशील पदार्थों के भीतर मुख्यत: कार्बन, हाईड्रोजन आदि घटक होते हैं जो स्वभावतः अतिशीघ्र कंबश्चन की क्रिया घटित कर सकते हैं। कंबश्चन या दहन की प्रक्रिया इस प्रकार घटित होती है 1. ज्वलनशील तत्त्व मौजूद होना चाहिए। 2. उसके साथ प्राणवायु (ऑक्सीजन) का सम्पर्क होना चाहिए। 3. अमुक निर्धारित तापमान प्राप्त होना चाहिए। ___ एक विशेष तापक्रम पर कई पदार्थ ऑक्सीजन/हवा के साथ प्रक्रिया करके जलने' लगते हैं। इस तापक्रम को ज्वलन-बिन्दु' या विस्फोटक बिन्दु कहते हैं। पदार्थ को जलने में हवा/प्राणवायु की भूमिका मुख्य होती है। प्राणवायु अलग-अलग प्रकार के पदार्थों के साथ भिन्न-भिन्न गति से प्रक्रिया करती है - यानि भिन्न-भिन्न गति से जलाती है तथा उसी हिसाब से ताप व प्रकाश पैदा करती है। उदाहरणार्थ – हवा में लकड़ी 295° से., कोयला 477° से., केरोसीन 295° से. तथा हाइड्रोजन गैस 580° से 590° से. तक जलेंगे। इस तापमान से कम पर कंबश्चन नहीं होगा। कौन सा पदार्थ कितने तापमान पर ज्वलन क्रिया करेगा, इसका पूरा कोष्ठक टिप्पण में है।" 4. उपर्युक्त तीनों की एक प्रणाली (System) बननी चाहिए। इतना होने पर एक रासायनिक क्रिया होती है जिसमें कार्बन जैसे मूल तत्त्व ऑक्सीजन के साथ रासायनिक रूप में संयुक्त होते हैं जिसके परिणाम स्वरूप 'अग्नि' प्रकट होती है और साथ ही साथ CO, (कार्बन डाई ऑक्साईड) यानी धुंआ तथा राख व अन्य अधजले ठोस पदार्थ भी उत्पन्न होते हैं।" इसी के साथ ताप, प्रकाश व कभी-कभी ध्वनि रूप ऊर्जा का विकिरण होता है। हाइड्रोजन ऑक्सीजन के साथ संयुक्त होने पर बाष्प बन जाती है जो HO के रूप में होती है, इसी प्रकार SO, (सल्फर डाई ऑक्साईड), NO, (नाइट्रोजन ऑक्साईड), O, (ओजोन) आदि गैस भी उत्पन्न हो सकती हैं। कभी-कभी CO (कार्बन मोनोक्साइड) अथवा मिथैन गैस के रूप में भी निष्पत्ति होती है। इस प्रकार की गैसें (मिथेन, इथेन, आदि) उत्पन्न होकर उपयुक्त तापमान पर पुन: ऑक्सीजन के साथ रासायनिक क्रिया करती हैं और अग्नि को और अधिक तेज बनाती हैं । जैसे-लकड़ी जलती है तब कार्बोनिक गैस बनती है जो ऑक्सीजन के साथ रासायनिक क्रिया कर 'ज्वाला' या 'लपट' के रूप में जलती है। जब अग्नि की प्रक्रिया मंद-मंद रूप में चलती है तब इस प्रकार की गैस नहीं बनती, उस समय इंधन में विद्यमान सेल्यूलोज, कार्बोहाइड्रेट्स या कार्बन मंद गति से गरम होती है। जब ज्वलन-बिंदु पर पहुंचती है तब प्राण वायु (ऑक्सीजन) के साथ रासायनिक क्रिया 34 - तुलसी प्रज्ञा अंक 122 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524617
Book TitleTulsi Prajna 2003 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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