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'कनाड़ा के प्रसिद्ध मनोविज्ञानी डॉ. हंसा सेल्ये ने लिखा है, "मनुष्य की सर्वोच्च शक्ति प्राण का अधिकांश भाग व्यर्थ के वार्तालाप, क्रियाकलाप में नष्ट हो जाता है। मानसिक तनाव, चिन्ता, अनिद्रा भी इस ऊर्जा का क्षरण करते हैं।" भारतीय योगशास्त्रियों का मत है कि 'प्राण ऊर्जा का यह क्षरण कुछ विशेष साधन अपनाने पर रोका जा सकता है तथा क्षरण हुई ऊर्जा की क्षतिपूर्ति भी की जा सकती है। यह साधन है संयमित आहार, चिन्तन-मनन की पवित्रता एवं परोपकार, सेवा-भावना का समावेश। अपनी शक्तियों को अनावश्यक विषयों पर चिंतन, व्यर्थ के वार्तालाप एवं क्रियाकलाप में व्यय होने से रोककर विषय विशेष अथवा धारा में प्रवाहित करने पर प्राण ऊर्जा केवल अधिक बढ़ेगी ही नहीं बल्कि अत्यंत प्रभावशाली एवं बलशाली भी हो जाएगी। इसी को प्राण साधना अथवा प्राण विद्या कहते हैं।"
"इस साधना का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण भाग है दृढ़ संकल्प तथा मनोबल के द्वारा ब्रह्माण्ड व्यापी समष्टिगत प्राण तत्त्व को आकाश से आकर्षित करना और अपने अंदर धारण करना । जो व्यक्ति अपने शरीर में बसे विशिष्ट प्राण को जितना अधिक अपने वश में कर सकता है उतनी ही अधिक मात्रा में वह समष्टि प्राण को अपने अन्दर संकलित कर सकता है। इस प्रकार साधक प्राण जगत की अनेक दिव्य क्षमताओं का धनी हो जाता है। यह मार्ग सभी सामान्य व्यक्तियों के लिए खुला हुआ है।
" किसी व्यक्ति के चेहरे अथवा शरीर के चारों ओर बिखरे हुए तेजोवलय को देखकर हम जान सकते हैं कि उस व्यक्ति में कितनी जैव विद्युत् शक्ति है । किन्तु यह तेजोवलय अथवा आभामण्डल इन स्थूल चक्षुओं से नहीं देखा जा सकता। इसके लिए सूक्ष्म दृष्टि की आवश्यकता है। पाश्चात्य जगत में किर्लियन फोटोग्राफी द्वारा इसे नापने का प्रयास चल रहा है।
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" निसंदेह मनुष्य एक जीता जागता विद्युत् घर है । किन्तु यह प्राण - विद्युत भौतिक विद्युत् की अपेक्षा असंख्य गुना बलशाली एवं प्रभावी है। प्राण- विद्युत् पर नियंत्रण, परिशोधन एवं उसका संचय तथा केन्द्रीयकरण करने से मानव असामान्य शक्तियों का स्वामी बन सकता है। अभी तो वैज्ञानिकों ने केवल स्थूल एवं भौतिक विद्युत् के चमत्कार जाने हैं और जिनको जानकर वे आश्चर्यचकित हैं। जिस दिन मानवी शरीर में विद्यमान इस जैव विद्युत् शक्ति के अथाह भण्डार का पता लगेगा उस दिन अविज्ञात क्षेत्र के असंख्य आश्चर्यचकित रहस्योद्घाटन का क्रम आरम्भ हो जाएगा। 33
विद्युत्- क्रियाएँ जीवन की महत्त्वपूर्ण या प्राणाधार क्रियाएँ हैं, जिनके बिना जीवन असंभव है ।
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'इलेक्ट्रीसिटी" अपने आप में क्या है ? शारीरिक विद्युत् प्रवाह और तारों में बहने वाला विद्युत् प्रवाह समान है या भिन्न ? आकाश में उत्पन्न होने वाले विद्युत्-डीस्चार्ज (निरावेशन) जिसे बिजली का चमकना ( lightning) कहा जाता है और तारों में बहने वाले इलेक्ट्रीक प्रवाह में कोई अन्तर है या नहीं ? आदि प्रश्नों पर अब हमें विचार करना है ।
तुलसी प्रज्ञा अंक 120-121
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