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________________ "विज्ञान के क्षेत्र में भी अब प्राणशक्ति के बारे में अनेक शोध प्रारम्भ हो गए हैं। सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. एच.के. बट के अनुसार जीवन का प्रमुख आधार प्राण-ऊर्जा ही है। प्रो. हडसन ने इसे सार्वभौमिक जीवन तत्त्व कहा है। नोबुल पुरस्कार विजेता प्रख्यात वैज्ञानिक हाजकिन हक्सले तथा एकलीस ने शरीर के ज्ञान-तंतुओं के बारे में खोज की है। इनकी खोज के अनुसार मानवी ज्ञान-तन्तु एक प्रकार के विद्युत्-संवाही तार हैं जिनके अन्दर निरंतर बिजली दौड़ती रहती है। सम्पूर्ण शरीर में बिखरे हुए इन ज्ञान-तंतुओं को यदि इकट्ठा कर एक लाईन में रखा जाए तो इनकी लंबाई सैकड़ों मील होगी। आप सोच सकते हैं कि इतनी लंबाई वाले तंतुओं को गतिशील रखने के लिए कितनी बिजली की आवश्यकता होगी। एक अन्य वैज्ञानिक डॉ. मैटुची बैनबर्ग ने अपने अनुसंधान निष्कर्ष में लिखा है कि इस शरीर के अन्दर विद्युत् शक्ति के अतुल भण्डार छिपे पड़े हैं। शरीर का प्रत्येक न्यूरोन एक छोटा डायनेमो है। जैव विद्युत् का उत्पादन यही न्यूरोन करते हैं । इन क्रियाओं का केन्द्र मस्तिष्क है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि एक स्वस्थ नवयुवक 20 वाट विद्युत् उत्पन्न करता है। "एक दूसरे नोबुल पुरस्कार विजेता प्रसिद्ध चिकित्सा शास्त्री जे. ज्योगी ने एक्टीन और मायोसीन नामक दो प्रोटीन तत्त्वों को मनुष्य शरीर में से खोजा है। इन दोनों प्रोटीनों की उत्पत्ति प्राण ऊर्जा से ही मानी गई है। वैज्ञानिकों ने शोध कर बताया है कि मानवी शरीर एक उच्चस्तरीय बिजली-घर है। इसमें से प्राण-विद्युत् तरंगें निरन्तर कम या अधिक मात्रा में निकलती रहती हैं। येल विश्वविद्यालय के सुप्रसिद्ध चिकित्सा शास्त्री हेराल्डबरी ने अपने शोध ग्रन्थ में लिखा है कि प्रत्येक प्राणी अपने-अपने स्तर के अनुसार कम या अधिक बिजली उत्पन्न करता है। इस मानवीय विद्युत् को उन्होंने 'लाइफ फील्ड' कहा है। उनके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति की लाइफ फील्ड की मात्रा अलग-अलग होती है और इसी लाइफ फील्ड की मात्रा के अनुसार वह जीवन में उन्नति अथवा अवनति करता है। "प्रसिद्ध परामनोवैज्ञानिकों की राय है कि सामान्य मनुष्य के शरीर से विकिरत होने वाली विद्युत्-तरंगें इसके स्थूल शरीर से 6 इंच बाहर तक होती हैं जबकि ज्ञानी पवित्र एवं योगियों के शरीर से यह विद्युत्-तरंगें 3 फीट की दूरी तक विद्यमान रहती हैं। डॉ. ब्राउन ने इस विद्युत् शक्ति को "बायोलोजिकल इलेक्ट्रिसिटी" कहा है और लिखा है कि यह मनुष्य के सूक्ष्म शरीर से उत्पन्न होती है। "भारतीय वेदान्त के अनुसार अपनी प्राण-ऊर्जा को प्राणयोग के सहारे बढ़ाया जा सकता है। इसके अन्तर्गत हमारे शरीर में जो सूक्ष्म एवं शक्तिशाली प्राण-चेतना निरन्तर अनियंत्रित प्रवाहित होती रहती है, उसको मन एवं दृढ़ संकल्प-शक्ति के द्वारा नियंत्रित कर एक विशेष बिन्दु विषय पर केन्द्रित किया जाता है अथवा विशेष दिशा में प्रवाहित किया जाता है। इस प्रकार निरन्तर अभ्यास करने पर यह चेतना मूलाधार से सहस्रार तक निर्बाध रूप से जुड़ जाती है। तुलसी प्रज्ञा अप्रेल-सितम्बर, 2003 - 49 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524615
Book TitleTulsi Prajna 2003 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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