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मस्तिष्क की तरह ही हृदय, मांसपेशियां (Muscles) आदि अवयवों की विद्युत्-धारा (इलेक्ट्रीक करंट) का अंकन करने के लिए इ. सी. जी. ( Electro-cardio-gram ), इ.एम.जी. (Electro-mayo-gram) आदि का प्रयोग किया जाता है। चमड़ी की रोग-निरोधक ऊर्जा का अंकन जी. एस. आर. (Galvanic skin resistance) द्वारा किया जाता है।
विशेष परिस्थितयों में किसी-किसी व्यक्ति का स्पर्श करने पर उसका विद्युत्प्रवाह दूसरे व्यक्ति को ‘झटके' (electric shock) के रूप में महसूस हो सकता है । 2 सामान्य परिस्थितियों में इसकी अनुभूति इसलिए नहीं होती कि इसकी मात्रा बहुत स्वल्प होती है। कितनी ही स्वल्प क्यों न हो, यह तो स्पष्ट है ही कि इलेक्ट्रीकल ऊर्जा का परिहार हम नहीं कर सकते। जब तक मानसिक, वाचिक, कायिक प्रवृत्तियाँ चालू हैं, हम शारीरिक बिजली के प्रयोग से नहीं बच सकते । संक्षेप में कहा जा सकता है कि मानव शरीर की सभी विद्युतक्रियाएं जीवन की महत्वपूर्ण या प्राणधार क्रियाएं हैं, जिनके बिना जीवन असंभव है।
जैव विद्युत् अथवा प्राण ऊर्जा
डॉ. राधाशरण अग्रवाल अपने शोधलेख "जैव विद्युत् अथवा प्राण ऊर्जा" में लिखते हैं- " शरीर की समस्त हलचलों एवं मस्तिष्क की क्रियाओं का एक मात्र स्रोत प्राण अथवा जैव विद्युत् है । यही जैव विद्युत् जीवन तत्त्व बनकर रोम-रोम में व्याप्त है। इसमें चेतना एवं संवेदना दोनों तत्त्व विद्यमान हैं। जिस प्रकार एक कारखाना भौतिक विद्युत् ऊर्जा के सहारे चलता है उसी प्रकार मानव की समस्त गतिविधियों का आधार यह जैव विद्युत् ही है।
"शरीर के अन्दर व्याप्त जैव विद्युत् की मात्रा पर ही व्यक्ति का उत्कर्ष एवं विकास निर्भर करता है। किसी व्यक्ति विशेष में यदि जैव विद्युत् सामान्य व्यक्ति से अधिक होती है तब वह प्रतिभाशाली, विद्वान्, मनीषी एवं प्रखर बुद्धि का धनी होता है पर यदि किसी व्यक्ति में यह कम मात्रा में होती है तब वह व्यक्ति मंदबुद्धि होता है और उसको कई प्रकार के मनोरोग घेर लेते हैं ।
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'इस जैव विद्युत् का सामान्य उपयोग शरीर को गतिशील एवं मन तथा मस्तिष्क को सक्रिय रखने में होता है। किन्तु इसका विशिष्ट एवं अधिक उपयोगी प्रयोग मनोबल, संकल्प-बल एवं आत्मबल बढ़ाने में होता है। इस शक्ति के इसी विशेष दिशा अथवा क्षेत्र में लगाने के कारण ही वह व्यक्ति विशेष प्रतिभाशाली एवं अद्वितीय आत्मबल का धनी बन जाता है। यही जैव विद्युत् साधना द्वारा सूक्ष्म रूप में परिवर्तित एवं संग्रहीत होकर प्राण ऊर्जा अथवा आत्मिक ऊर्जा बन जाती है।
" जैव विद्युत् शक्ति को विभिन्न देशों में विभिन्न नामों से जाना जाता है। चीन में इसे 'चो एनर्जी', जापान में 'की एनर्जी', यूरोप, अमरीका में 'यूनीवर्सल एनर्जी' तथा 'वाइटल फोर्स' के नाम से पुकारते हैं। शरीर विज्ञानी इसे 'बायोलोजिकल एनर्जी' कहते हैं।
तुलसी प्रज्ञा अंक 120-121
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