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________________ 5. विज्ञान की दृष्टि में विद्युत् (Electricity ) अंग्रेजी भाषा में दो शब्दों का प्रयोग उपलब्ध होता है- 1. इलेक्ट्रीसिटी (electricity) यानी इलेक्ट्रीक ऊर्जा या प्रवाह (current)। 2. लाईटनिंग (lightning) यानी आकाश में चमकने वाली विद्युत् या बिजली । हिन्दी और गुजराती में इन दोनों के लिए एक ही शब्द का प्रयोग होता है - बिजली ( या विद्युत्), फिर भी वास्तव में इनमें जो भिन्नता है, उसकी स्पष्ट समझ आवश्यक है। इसे समझने के लिए विज्ञान की मूल अवधारणाओं को स्पष्ट करना अपेक्षित है । वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार प्रत्येक मूल पदार्थ (element) बहुत बड़ी संख्या में परमाणुओं के संगठन से निर्मित है। प्रत्येक पदार्थ के परमाणु (atom) की विशिष्ट रचना के कारण पदार्थों में भिन्नता आती है। सभी पदार्थों की परमाणुओं की मूल संरचना में समानता है - परमाणु के दो हिस्से हैं. - 1. केन्द्रक ( nucleus ), 2. परिधि । केन्द्रक में दो प्रकार के कण होते हैं. 1. प्रोटोन, 2. न्यूट्रोन । परिधि में केवल एक ही प्रकार के कण होते हैंइलेक्ट्रोन ।4 ये मौलिक कण ही अपने विशिष्ट गुणधर्मों के द्वारा " विद्युत् " यानी इलेक्ट्रीसीटी प्रक्रिया के मूल में हैं। इसलिए इनकी प्रकृति एवं प्रक्रियाओं को समझे बिना न तो विद्युत् यानि इलेक्ट्रीसीटी और विद्युत् यानि आकाश में चमकने वाली बिजली ( lightning) के बीच अन्तर को समझा जा सकता है और न अग्नि (fire) और इलेक्ट्रीसीटी के अन्तर को भी स्पष्टतया जाना जा सकता है T यहां पर संक्षेप में कुछ मुख्य बातें दी जा रही हैं 1. पदार्थ में संहति या द्रव्यमान (mass) और विद्युत् आवेश (electric charge) - ये दो मौलिक गुण माने जाते हैं | इलेक्ट्रोन, प्रोटोन और न्यूट्रोन में ये गुण जिस रूप में हैं, उसे निम्न कोष्ठक में बताया गया है. - विद्युत् आवेश ऋण 1 यूनिट धन 1 यूनिट शून्य 0 2. हाइड्रोजन एटम7 सब पदार्थों के एटमों में सबसे कम द्रव्यमान वाला है। इसे "परमाणु- भार" की इकाई माना जाता है। इस प्रकार हाइड्रोजन का परमाणु- भार एक है। कण इलेक्ट्रोन प्रोटोन न्यूट्रोन द्रव्यमान Jain Education International -27 10 ग्राम -24 10 ग्राम -24 10 ग्राम 3. हाइड्रोजन के एक एटम में एक इलेक्ट्रोन और एक प्रोटोन होता है, न्यूट्रोन नहीं होता । इलेक्ट्रोन की संख्या के आधार पर "परमाणु क्रमांक " (atomic number) निर्धारित होता है : तुलसी प्रज्ञा अप्रेल - सितम्बर, 2003 For Private & Personal Use Only 51 www.jainelibrary.org
SR No.524615
Book TitleTulsi Prajna 2003 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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