SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नामक स्पर्श-गुण अवश्य होता है। यदि इन्हें ही पोजीटीव-नेगेटीव इलेक्ट्रीक चार्ज के रूप में समझा जाए तो सभी पुद्गलों में इलेक्ट्रीक चार्ज का अस्तित्व भी सिद्ध हो जाता है। विज्ञान के अनुसार भी इलेक्ट्रीक चार्ज पदार्थ का मौलिक गुण है और प्रत्येक परमाणु में इसका अस्तित्व स्वीकार किया गया है। 2. जीव और पुद्गल का संबंध परमाणु-पुद्गल से लेकर अनन्तानन्त प्रदेशी स्कन्धों तक (जिनमें महास्कन्ध वर्गणा भी है) पुद्गल की अनेक वर्गणाएँ हैं। इनमें से 23 वर्गणाओं का वर्णन उपलब्ध है।" इनमें से केवल पांच वर्गणाएँ ऐसी हैं, जिन्हें संसारी जीव ग्रहण कर सकते हैं12 --- ___ 1. आहार-वर्गणा-इसमें औदारिक, वैक्रिय, आहारक और श्वासोच्छ्वास वर्गणा के पुद्गल-स्कन्ध समाविष्ट हैं। ____ 2. तैजस वर्गणा-सभी संसारी जीवों के साथ निरन्तर रहने वाले सूक्ष्म शरीर यानि तैजस शरीर का निर्माण इनसे होता है। विज्ञान की दृष्टि से "जैव-विद्युत्" (Bio-electricity) का सम्बन्ध तैजस वर्गणा के साथ है। प्राणी की लेश्या भी तैजस वर्गणा से सम्बद्ध है। विज्ञान ने आभामण्डल (Aura) का छायांकन (Photography) किर्लियन फोटोग्राफी द्वारा कर लिया है जो प्राणी के तैजस शरीर द्वारा निर्मित एक "विद्युत्-चुम्बकीय-क्षेत्र" (Electromagnatic field) के रूप में होता है। आभामण्डल के पुद्गल द्रव्य लेश्या का प्रतिबिम्ब है जो विभिन्न रंगों के रूप में प्रकट होते हैं। (वैसे अजीव पदार्थ के आभामण्डल का भी छायांकन किया गया है। सजीव प्राणी का आभामण्डल भावधारा के साथ बदलता रहता है जबकि अजीव पदार्थ का आभामण्डल स्थित रहता है, बदलता नहीं।) तैजस वर्गणा के पुद्गल-स्कन्ध तैजस-शरीर के रूप में पाचन-क्रिया आदि शारीरिक क्रियाओं में उपयोग में आते हैं तथा विशिष्ट लब्धिधारी व्यक्ति को प्राप्त तैजसलब्धि (या तेजोलेश्या) में भी इन्हीं पुद्गल-स्कन्धों का उपयोग होता है। 3. भाषा-वर्गणा 4. मनो-वर्गणा 5. कार्मण-वर्गणा जीव द्वारा औदारिक शरीर, वैक्रिय शरीर, आहारक शरीर, श्वासोच्छ्वास, तैजस शरीर, भाषा, मन और कार्मण शरीर के रूप में परिणत पुद्गल-स्कन्धों का जीव से पृथक्करण होने पर वे 'मुक्त' पुद्गल हो जाते हैं। जब तक वे जीव के साथ रहते हैं, तब तक उन्हें 'बद्ध' पुद्गल कहा जाता है। ये आठ प्रकार के पुद्गल-स्कन्ध अपने आप में अचित्त हैं। इनका भी परिणमन होता है और इनका रूपान्तरण भी संभव है। 4 आहार वर्गणा के अन्तर्गत - औदारिक शरीर वर्गणा, वैक्रिय शरीर वर्गणा, आहारक तुलसी प्रज्ञा अप्रेल-सितम्बर, 2003 - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524615
Book TitleTulsi Prajna 2003 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy