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________________ क्या विद्युत् (इलेक्ट्रीसीटी) सचित्त तेउकाय है ? - मुनि महेन्द्र कुमार 'आगमस्य अविरोधेन ऊहनं तर्क उच्यते।'' आगम के साथ विरोध न हो, उस प्रकार तत्त्व की शोध के लिए सुविचारणा करना ही तर्क कहलाता है। इस आधार पर प्रस्तुत विषय की निष्पक्ष मीमांसा जरूरी है। मूल विषय में जाने से पूर्व कुछ मूलभूत / आधारभूत बिन्दुओं को स्पष्टतः ध्यान में रखना होगा। 1."तमेव सच्चं निस्संकं जं जिणेहिं पवेइयं"2 – यह हमारे चिन्तन का प्रमुख आधार होना चाहिए। इसके साथ-साथ यह भी समझना होगा कि "जिनेश्वर देव द्वारा प्रवेदित" तथ्य को हमने सही रूप में समझा है या नहीं। आगम-वचन की विवक्षा क्या है, किस दृष्टि से किस बात को कहा गया है, इसकी पर्याप्त समझ के बिना मूल में ही आगम-वचन के नाम पर हम कोई ऐसी बात तो नहीं कह रहे हैं, जो जिनेश्वर देव द्वारा विवक्षित न हो। प्रत्येक वचन उसके सही परिप्रेक्ष्य में ही समझना नयदृष्टि का मन्तव्य है। पूर्वापर प्रसंग, शब्दों के विभिन्न अर्थ, दृष्टिकोण या अपेक्षा के सम्यग् बोध बिना आगम-वचन का तात्पर्य कैसे समझेंगे? इसलिए निःशंक और सत्य बात तक पहुंचने के लिए प्रयत्न होना चाहिए। 2. विज्ञान द्वारा जो भी सूचना मिल रही है, उसे भी आगम एवं अन्य प्रमाणों के आधार पर कसकर स्वीकार्य मानना होगा। न विज्ञान की बात को आंखें बंद कर स्वीकार करना, न ही उसके विरोध में पूर्वाग्रह रखना। युक्तियुक्त एवं आगम-अविरुद्ध तथ्यों को तटस्थता पूर्वक समझने की कोशिश करना- यही उचित, समीचीन एवं उपादेय लगता है। 3. बात आगम की हो या विज्ञान की, पहले हमारी समझ को सही बनाना जरूरी है। यदि आगम के नाम पर या विज्ञान के नाम पर हम उसे समझे बिना किसी बात का प्ररूपण कर देंगे तो न्याय नहीं होगा। तुलसी प्रज्ञा अप्रेल-सितम्बर, 2003 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524615
Book TitleTulsi Prajna 2003 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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