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________________ क्षेत्र की अपेक्षा स्कन्ध सप्रदेशी भी होते हैं और अप्रदेशी भी। जो एक आकाश प्रदेशावगाही होता है वह अप्रदेशी और जो दो आदि आकाश-प्रदेशावगाही होता है वह सप्रदेशी। काल की अपेक्षा जो स्कन्ध एक समय की स्थिति वाला होता है वह अप्रदेशी और जो इससे अधिक स्थिति वाला होता है वह सप्रदेशी। भाव की अपेक्षा एक गुण वाला स्कन्ध अप्रदेशी और अधिक गुण वाला सप्रदेशी होता है। परमाणु-पुद्गल की शाश्वतता-अशाश्वतता जैन दर्शन के अनुसार अस्तित्व विरोधी धर्मों का समवाय है। प्रत्येक वस्तु में एक साथ, एक ही काल में विरोधी धर्मों का सहावस्थान है। परमाणु-पुद्गल में भी यही नियम घटित होता है । वह शाश्वत भी है और अशाश्वत भी है।' द्रव्यार्थ की अपेक्षा वह शाश्वत है एवं वर्ण, गंध, रस एवं स्पर्श पर्याय की अपेक्षा अशाश्वत है।2 अपेक्षा भेद से वस्तु में स्थित विरोधी धर्मों के सहावस्थान की सम्यक् व्याख्या की जा सकती है। पुद्गल के परिवर्तन का नियम पुद्गल द्रव्य के दो रूप हैं - परमाणु और स्कन्ध। परमाणु मिलकर स्कन्ध का निर्माण करते हैं। स्कन्ध का विघटन होने पर वे फिर परमाण बन जाते हैं। यह परिवर्तन चक्र सतत चलता रहता है। परमाणु का परमाणु के रूप में अवस्थान जघन्य एक समय एवं उत्कृष्ट असंख्येय काल तक हो सकता है 33 अर्थात् परमाणु का परमाणु के रूप में अधिकतम अवस्थान असंख्येय काल तक ही हो सकता है। उसके पश्चात् उसे स्कन्ध रूप में परिणत होना ही पड़ेगा। कोई भी पुद्गल एक ही रूप में अनन्त काल तक नहीं रह सकता। इनके परिवर्तन की न्यूनतम सीमा बहुत छोटी है, मात्र एक समय । एक समय और असंख्यकाल की सीमा के मध्य जितना काल है उतने ही विकल्प बन जाते हैं। यही नियम परमाणु की भाँति स्कन्ध पर ही लागू होता है। असंख्येयकाल के बाद तो नियमतः ही परमाणु को स्कन्ध एवं स्कन्ध को परमाणु बनना ही पड़ेगा। वर्ण, गंध, रस और स्पर्श-ये पुद्गल के गुण हैं । काला वर्ण एक गुण (Quality) है । उस काले गुण में अनन्त गुणांश रह सकते हैं अर्थात् काले वर्ण में भी तरतमता रहती है, कोई परमाणु एक गुण काला है, कोई दो यावत् अनन्त गुण काला हो सकता है। एक गुण काला जघन्य गुण काला कहलाता है। उसमें गुणांशों की वृद्धि होने पर क्रमश: दो गुण, तीन गुण - इस प्रकार अवस्था भेद होता रहता है। गुण में गुणांश सदा एकरूप नहीं रहता। वह बदलता रहता है। कम-से-कम एक समय में एवं उत्कर्षतः असंख्यकाल में उन गुणांशों में अवश्य परिवर्तन हो जाता है। वर्ण, गंध, रस एवं स्पर्श - इन सबके गुणांशों पर यही नियम लागू होता है। पुद्गल में परिणमन होता रहता है। वह अल्पकालिक भी होता है और दीर्घकालिक ___4 - तुलसी प्रज्ञा अंक 119 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524614
Book TitleTulsi Prajna 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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