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________________ परमाणु की सप्रदेशता - अप्रदेशता पुद्गल द्रव्य की सूक्ष्मतम इकाई को परमाणु कहते हैं । परमाणु से और कोई छोटा भेद पुद्गल का नहीं हो सकता । परमाणु अभेद्य है। 20 परमाणु अपनी द्रव्यात्मक अवस्था में विशुद्ध रूप से अकेला होता है। वह अपनी स्वतंत्र अवस्था में अप्रदेशी है । परमाणु का अर्ध, मध्य भाग भी नहीं होता। 21 ठाणं में भी परमाणु को अभेद्य, अदाह्य, अग्राह्य, अनर्ध, अमध्य, अप्रदेश एवं अविभागी कहा है। 22 भगवती में परमाणु के चार प्रकार बतलाए हैं. - द्रव्य परमाणु, क्षेत्र परमाणु, काल परमाणु एवं भाव परमाणु। वहां द्रव्य परमाणु को अछेद्य, अभेद्य, अदाह्य, अग्राह्य, एवं क्षेत्र परमाणु को अनर्ध, अमध्य, अप्रदेश एवं अविभागी कहा है। 23 भगवती में द्रव्य और क्षेत्र परमाणु का जो स्वरूप बताया है, स्थानांग में यह संयुक्त रूप से द्रव्य और क्षेत्र का भेद किये बिना परमाणु के स्वरूप का व्याख्यान है । भगवती में ही अन्यत्र परमाणु को अर्ध, अमध्य और अप्रदेश कहा है। 24 परमाणु अप्रदेश है - यह वक्तव्य द्रव्य एवं क्षेत्र परमाणु की अपेक्षा से है। काल एवं भाव की अपेक्षा परमाणु सप्रदेशी एवं अप्रदेशी दोनों हो सकता है।25 द्रव्य की अपेक्षा परमाणु निरवयव है, अत: वह अप्रदेशी है तथा क्षेत्र की अपेक्षा वह एक आकाश प्रदेशावगाही ही होता है, अतः क्षेत्र की अपेक्षा भी अप्रदेशी है । काल की अपेक्षा जो परमाणु एक समय स्थिति वाला है अर्थात् एक समय के बाद स्कन्ध में परिवर्तित हो जाएगा वह अप्रदेशी एवं एक से अधिक समय स्थिति तक परमाणु रूप में ही रहेगा, वह सप्रदेशी है। एक परमाणु में एक वर्ण होता है। उस वर्ण की मात्राएँ अनेक होती हैं । कभी वह एक गुण काला होता है, कभी दो गुण, संख्यात गुण, असंख्यात गुण और अनन्त गुण काला होता है। इसी प्रकार गंध, रस और स्पर्श में भी गुण भेद अथवा मात्रा भेद होता है । जब एकगुण अथवा एकमात्रा वाला होगा तब भाव की अपेक्षा भी अप्रदेशी होगा। एक से अधिक या मात्रा वाला होगा तो सप्रदेशी कहलाएगा 126 I भगवती में भाव परमाणुओं में वर्णवान, गंधवान, रसवान एवं स्पर्शवान कहा है। 27 इस अपेक्षा से भी उन्हें सप्रदेशी कहा जा सकता है। सिद्धसेनगणी के अनुसार भाव परमाणु सावयव और द्रव्य परमाणु निरवयव होता है। 28 अनेकान्त दृष्टि से विचार करने पर परमाणु की प्रदेशता - अप्रदेशता सिद्ध हो जाती है । स्कन्ध की सप्रदेशता - अप्रदेशता. परमाणु की तरह ही अपेक्षा भेद से स्कन्ध भी सप्रदेशी एवं अप्रदेशी उभय रूप हो सकता है। जैसा कि हमने ऊपर उल्लेख किया था कि द्रव्य की अपेक्षा परमाणु अप्रदेशी ही होता है। स्कन्ध के सम्बन्ध में इससे विपरीत होगा, द्रव्य की अपेक्षा स्कन्ध सप्रदेशी ही होगा। 29 क्षेत्र, काल एवं भाव की अपेक्षा स्कन्ध सप्रदेशी एवं अप्रदेशी उभयरूप हैं । द्रव्य की अपेक्षा द्विप्रदेशी आदि स्कन्ध सप्रदेश होते हैं । तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2003 Jain Education International For Private & Personal Use Only 3 www.jainelibrary.org
SR No.524614
Book TitleTulsi Prajna 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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