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________________ भी होता है। पुद्गल के परिणाम का अर्थ है - वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, संस्थान आदि का परिवर्तन।” यह परिवर्तन गुणात्मक और रूपात्मक दोनों प्रकार का होता है । वर्ण का गुणात्मक परिवर्तन, यथा- -एक गुण काला परमाणु, दो, तीन, चार यावत् अनन्त गुण काला हो जाता है। रूपात्मक परिवर्तन – जैसे काले रंग का परमाणु पीले रंग में बदल जाता है । यह परिणाम गंध, रस, स्पर्श, संस्थान आदि सबमें होता है। 38 परमाणु का विखण्डन पुद्गल की अन्तिम इकाई है - परमाणु । परमाणु का छेदन, भेदन, दहन, स्पर्शन आदि नहीं हो सकता जैसा कि हम पहले वर्णन कर चुके हैं । परमाणु से लेकर असंख्य प्रदेशी स्कन्ध का बाह्य साधनों से छेदन-भेदन नहीं किया जा सकता। 39 अनन्तप्रदेशी स्कन्ध में विकल्प है, उसका छेदन-भेदन आदि हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता । 40 आधुनिक विज्ञान के अनुसार परमाणु का विखण्डन हो सकता है। इस संदर्भ में हम जैन दर्शन की अवधारणा पर विमर्श करेंगे। परमाणु की द्विरूपता अनुयोगद्वार में परमाणु के दो प्रकार बतलाए गए हैं – सूक्ष्म और व्यावहारिक । 1 व्यावहारिक परमाणु अनन्त सूक्ष्म परमाणुओं के समुदाय से निष्पन्न होता है। 42 निश्चयनय की अपेक्षा से वह अनन्तप्रदेशी स्कन्ध है । व्यवहारनय की अपेक्षा से उसे व्यावहारिक परमाणु कहा गया है। 13 परमाणु एवं असंख्य प्रदेशी स्कन्ध का विखण्डन नहीं होता तथा अनन्तप्रदेशी स्कन्ध का विखण्डन हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता, इस नियम का उल्लेख पूर्व में किया जा चुका है। अनन्तप्रदेशी स्कन्ध के लिए विकल्प इसलिए है कि स्थूल परिणति वाला अनन्त प्रदेशी स्कन्ध असिधारा से छिन्न-भिन्न हो जाता है तथा सूक्ष्म परिणति वाला असिधारा से छिन्न-भिन्न नहीं होता। 44 व्यावहारिक परमाणु सूक्ष्म परिणति वाला अनन्तप्रदेशी स्कन्ध है । अनुयोगद्वार के अनुसार वह असिधारा से छिन्न-भिन्न नहीं होता। 45 जैनदर्शन के अनुसार विज्ञानसम्मत अणु अनन्तप्रदेशी स्कन्ध है । व्यावहारिक परमाणु भी शस्त्र से नहीं टूटता। विज्ञान अणु में विभाजन स्वीकार कर रहा है। इस संदर्भ में आचार्य महाप्रज्ञ का मन्तव्य मननीय है. "व्यावहारिक परमाणु भी शस्त्र से नहीं टूटता। इस विषय में एक प्रश्न उपस्थित होता है- -आगम साहित्य में असिधारा से परमाणु छिन्न-भिन्न नहीं होता, यह कहा गया है। असि की धारा बहुत स्थूल होती है, इसलिए उससे परमाणु का विभाजन नहीं होता, यह सही है। आधुनिक विज्ञान ने बहुत सूक्ष्म उपकरण विकसित किए हैं। उनसे व्यावहारिक परमाणु के विभाजन की संभावना की जा सकती है। 46 " तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2003 Jain Education International For Private & Personal Use Only 5 www.jainelibrary.org
SR No.524614
Book TitleTulsi Prajna 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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