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100. भगवतीवृत्ति, पत्र 395, भाजनं–आधारः । 101. वही, 395, तत्र जीर्णसुरायाः स्त्यानीभवनलक्षणो बन्धः, जीर्णगुडस्य जीर्णतन्दुलानां च
पिण्डीभवनलक्षणः। 102. वही, 395, परिणामो— रूपान्तरगमनं । 103. सभाष्यतत्त्वार्थधिगम, 5/24 104. अंगसुत्ताणि 2 (भगवई) 8/347, 350-351 105. तत्त्वार्थाधिगमभाष्यवृत्ति, 5/24, पृ. 360 106. सभाष्यतत्त्वार्थाधिगम, 5/24, बन्धस्त्रिविधः-प्रयोगबंधो, विस्रसाबंधो मिश्रबंधः । 107. अंगसुत्ताणि 2 (भगवई) 8/1 108. वही, 8/345 109. तत्त्वार्थाधिगमभाष्यवृत्ति, 5/24, पृ. 360 110. अंगसुत्ताणि 2 (भगवई) 16/116,........परमाणुपोग्गले णं लोगस्स पुरथिमिल्लं तं चेव जाव उवरिलं
चरिमंतं एगसमएणं गच्छति।
निदेशक
महादेवलाल सरावगी अनेकान्त शोधपीठ जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) लाडनूं-341 306 (राज.)
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तुलसी प्रज्ञा अंक 119
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