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अनयोगद्वार सूत्र में नय विवेचना
-डॉ. अनेकान्त कुमार जैन
अनुयोगद्वार सूत्र का मुख्य विषय चौदह अनुयोगद्वार है। यह आर्यरक्षित द्वारा रचित माना जाता है। विषय और भाषा की दृष्टि से यह सूत्र काफी अर्वाचीन मालूम होता है। इस पर भी जिनदासगणि महत्तर की चूर्णि तथा हरिभद्र और अभयदेव के शिष्य मलधारि हेमचन्द्र की टीकाएँ हैं। प्रश्नोत्तर की शैली में इसमें प्रमाणपल्योपम, सागरोपम, संख्यात, असंख्यात और अनन्त के प्रकार तथा निक्षेप, अनुगम और नय का प्ररूपण है। नाम के दस प्रकार, नव काव्य-रस और उनके उदाहरण, मिथ्याशास्त्र, स्वरों के नाम, स्थान, उनके लक्षण, ग्राम, मूर्च्छना आदि का वर्णन किया है।
वस्तुत: अनुयोगद्वार आवश्यक-सूत्र के सामायिक नामक प्रथम अध्ययन की टीका है। वहाँ यह कहा गया है कि सामायिक में उपक्रम, निक्षेप, अनुगम और नय नामक अनुयोगद्वार हैं।' इनमें भी विशेषकर चार निक्षेपों पर बल दिया गया है। द्रव्य और भाव को क्रमशः बाह्यपक्ष और आन्तरिक पक्ष बतलाया गया है।
__ अनुयोगद्वार सूत्र में नय सम्बन्धी विशद विवेचना है। अनुयोगद्वार सूत्र में ही प्रथम बार सातों नयों की पृथक्-पृथक् स्पष्ट परिभाषाएँ मिलती हैं। प्रत्येक नय की परिभाषाओं को उन नयों से सम्बंधित अध्यायों में वर्णित कर दिया गया है। इसके अलावा जो नयों के माध्यम से चर्चा की गयी है उसका वर्णन प्रस्तुत है।
अनुयोगद्वार में मुख्यतः नैगम, व्यवहार और संग्रहनय की चर्चा है। उदाहरणतः यह कहा गया है कि नैगम और व्यवहार नय की दृष्टि से द्रव्यावश्यक के दो भेद हैं - 1. आगतोद्रव्यावश्यक, 2. नो आगमतो द्रव्यावश्यक।
. 1.आगमतोद्रव्यावश्यक-आगमोद्रव्यावश्यक को समझाते हुए अनुयोगद्वार में लिखा है कि जिसने आवश्यक यह पद सीख लिया, स्थिर कर लिया, चित्त (अर्थात् स्मृति के योग्य) कर लिया, मित (अर्थात् श्लोक आदि की संख्या से
तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2003
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