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________________ सहायक। सच्चे मित्र में चार बातें होती हैं-1. उपकारी होना, 2. सुख-दुःख में समान रहने वाला, 3. अर्थ प्राप्त कराने वाला, 4. अनुकम्पक।। ___ अंगुत्तरनिकाय में कहा है जो प्रिय हो, अनुकूल हो, गौरव-भाजन हो, पूज्य हो, वक्ता हो, वचनक्षम हो, गम्भीर बात करने वाला हो तथा अनुचित मार्ग से दूर करने वाला हो उसकी संगति करनी चाहिए पियो गरु भावनीयो वत्ता च वचनक्खयो। गम्भीर च कथं कत्ता नो चट्ठाने नियोजको। यम्हि एतानि ठानाति, सविज्जन्तीध पुग्गले। सो मत्तो मित्तकामेन, भजितब्बो तथाविधो॥ गृहस्थों का विनय : ___ राजगृह के वेणुवन कलन्दकनिवाप में भाषित सिगालोवादसुत्त है। इसमें गृहस्थों का कर्तव्य बतलाया गया है, इसीलिए इसे गृहस्थों का विनय भी कहते हैं। सिंगाल राजगृह का वैश्य-पुत्र था। वह साँझ-सवेरे उठकर सभी दिशाओं को हाथ जोड़कर नमस्कार करता था। भगवान् के पूछने पर उसने कहा-मरते समय पिता ने कहा था, तात! दिशाओं को नमस्कार करना। पिता के वचन को मानकर मैं नमस्कार करता हूँ। भगवान् ने कहा- ऐसे नहीं, चार कर्मक्लेशों के नाश से इस लोक तथा परलोक की विजय होती है-1. प्राणी न मारना, 2. चोरी न करना, 3. व्यभिचार न करना, 4. झूठ न बोलना, इस प्रकार भगवान बुद्ध ने परम्परागत मूढ़ विचारधाराओं का निरसन कर व्यावहारिक सदाचारी मार्ग अपनाने का उपदेश दिया है। अहिंसा और करुणा: बुद्ध ने प्राणिमात्र के प्रति करुणा करने का उपदेश दिया है। उन्होंने कहा है कि सभी प्राणी सुखी हों, सभी का कल्याण हो और सभी सुखपूर्वक रहें ये केचि पाणभूतत्थि तसा वा थावरा वा अनवसेसा। दीना वा ये महान्ता वा मज्झिमा रस्मकाणुकथूला॥ दिट्ठा वा ये व अदिट्ठा ये च दूरे वसन्ति अविदूरे। भूता वा संभवेसी वा सब्बे सत्ता भवन्ति सुखितत्ता॥ -मेत्तसुत 4-5 संयुत्तनिकाय में कहा है कि जो शरीर मन और वचन से हिंसा नहीं करता और पर को नहीं सताता, वही अहिंसक है। अहिंसक की यह परिभाषा बड़ी व्यापक व मानवता से भरपूर है। अंगुत्तरनिकाय में यह कहा गया है कि व्यक्ति को तीन प्रकार की शुचिता प्राप्त करनी चाहिए 1. शरीर शुचिता-प्राणी हिंसा, चोरी, मिथ्याचार से विरति। 2. वाणी शुचिता-मृषावाद, पैशुन्य, कठोर वचन तथा व्यर्थ वचन से विरति। 3. मानसिक शुचिता- क्रोध, लोभ, मिथ्यादृष्टि, आलस्य, औद्धत्य, कौकृत्य, विचिकित्सा आदि से विरति।1 34 - तुलसी प्रज्ञा अंक 118 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524613
Book TitleTulsi Prajna 2002 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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