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वैर का मूल कारण दुःशीलता ही है । वैराग्नि का शमन शील से ही हो सकता है। जो व्यक्ति शील का पालन नहीं करता, दुराचारी होकर अनेक प्रकार के पापकर्मों में ही लगा रहता है, वह मानवता से च्युत समझा जाता है। उसकी दुर्गति होती है और वह जब तक सदाचारी नहीं बनता है, तब तक निर्वाण-सुख को नहीं प्राप्त कर सकता । उसका जीवन निस्सार और हेय माना जाता है। भगवान् बुद्ध ने कहा है कि असंयमी और दुराचारी होकर राष्ट्र का अन्न खाने से आग की लपट के समान तप्त लोहे का गोला खा लेना उत्तम है । 'S पंचशील सदाचर के पांच सार्वभौम नियम हैं। वे इस प्रकार हैं" -
1. प्राणतिपात अर्थात् जीव-हिंसा से विरति,
2. मुसावाद या असत्य भाषण से विरति, 3. अदिन्नादान या चोरी से विरति,
4. परदारञ्च या परस्त्रीगमन से विरति,
5. सुरामेरयपानञ्च अर्थात् मद्यपान से विरति ।
जो व्यक्ति इनका पालन करता है, उसका आचरण पवित्र माना जाता है ।
सामान्य शिष्टाचार की शिक्षा :
भगवान बुद्ध ने प्रतिदिन के जीवन में उपस्थित होने वाली बातों पर भी हमें मार्गदर्शन प्रदान किया है। सामाजिक शिष्टाचार की शिक्षा देते हुए वे कहते हैं कि गृहस्थ का कर्त्तव्य हैसमागत अतिथि का प्रसन्न मन से उठकर स्वागत करना, अभिवादन करना, बैठने के लिए आसन देना, किसी रखी हुई वस्तु को नहीं छिपाना, बहुत रहने पर थोड़ा नहीं देना, जो भी दें आदरपूर्वक देना। जिस गृहस्थ कुल में ये सात बातें न हों वहाँ कभी नहीं जाना चाहिए। "
तथागत ने व्यक्ति की अवनति के कारणों पर भी अत्यन्त व्यावहारिक बुद्धि से विचार किया है। उन्होंने कहा है कि कार्यबहुलता, वचन - बहुलता, निद्रा - बहुलता, मण्डली - बाहुल्य ( अत्यधिक सामाजिक होना), दुर्वचनीयता व कुसंगति, ये छ: कारण हैं जिनसे व्यक्ति की उन्नति नहीं हो पाती-(छकक निपात, अंगुत्तर निकाय) । श्रावस्ती में भगवान् ने व्यक्ति की अवनति के और भी कारण प्रदर्शित किए हैं, जिनमें प्रमुख हैं - 1. धर्मद्वेष, 2. असत्पुरुष प्रियता, 3. निद्रा, अधिक सम्पर्क, अनुद्योग, क्रोध, 4. वृद्ध माता-पिता की अशुश्रूषा, 5. मिथ्या भाषण, 6. मात्र स्वादिष्ट भोजन, 7. जाति, धन तथा गोत्र का गर्व व बन्धुओं का अपमान, 8. मिथ्याचार व मद्यमान, 9. परस्त्री संसर्ग, 10. अनमेल विवाह, 11. लालची भृत्य तथा 12. अल्पसाधन सम्पन्न पर महालालची पुरुष द्वारा राज्य की इच्छा। ये पराभव के कारण ऐसे हैं, जिन्हें कोई भी अस्वीकार नहीं कर सकता।'
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सम्पत्ति नाश के कारण हैं - 1. शराब आदि का सेवन, 2. चौरस्ते की सैर, 3. समाज - नाच - तमाशा, 4. जुआ, 5. . बुरे मित्र की मित्रता, 6. आलस्य में जीना। इनमें से हरेक से अनिष्ट होता है । इसमें आगे बतलाया है - चार मित्र रूप में शत्रु हैं - 1. परधनहारक, 2. बातुनी, 3. सदा मीठा बोलने वाला, 4. अपाय ( हानिकर) बात में
तुलसी प्रज्ञा अक्टूबर-दिसम्बर, 2002
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