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________________ - भंते। क्या अचित्त पुद्गल भी वस्तु को अवभासित करते हैं? उद्योतित करते हैं? तप्त करते हैं? प्रभासित करते हैं? – हां, करते हैं। -- भंते। वे कौन-से अचित्त पुद्गल वस्तु को अवभासित करते हैं? उद्योतित करते हैं? प्रभासित करते हैं? कालोदायी। क्रुद्ध अनगार ने तेजोलेश्या का निसर्जन किया। वह दूर जाकर दूर देश में गिरती है, पार्श्व में जाकर पार्श्व देश में गिरती है। वह जहां-जहां गिरती है, वहां-वहां उसके अचित्त पुद्गल भी वस्तु को अवभासित करते हैं, उद्योतित करते हैं, तप्त करते हैं और प्रभासित करते हैं। कालोदायी । इस प्रकार वे अचित्त पुद्गल भी वस्तु को अवभासित करते हैं, उद्योतित करते हैं, तप्त करते हैं और प्रभासित करते हैं। (भगवई 7/229-230) कुछ विचारक कहते हैं-इसमें विद्युत् का नाम नहीं है। प्रश्र नाम होने का नहीं है। मूल प्रतिपाद्य यह है-अचित्त पुद्गल प्रकाश करते हैं, तप्त करते हैं। उस स्थिति में यह व्याप्ति नहीं बनती कि जिसमें दाहकता है, प्रकाश है, ताप है, वह सचित्त ही होता है। नरक में होने वाली अग्नि, तेजोलेश्या के प्रयोग के समय निकलने वाली ज्वाला जैसे अचित्त अथवा निर्जीव अग्नि है वैसे ही विद्युत् भी अचित्त और निर्जीव अग्नि है, यह स्वीकार करने में कोई कठिनाई नहीं है। वास्तव में अचित्त अग्नि तैजस् ऊर्जा है, तैजस वर्गणा के पुद्गल हैं । षड्जीवनिकाय में आने वाला सजीव अग्निकाय नहीं है। भगवती वृत्ति में तेजोलेश्या को अग्निसृदश द्रव्य कहा गया है। (भ. वृ. पत्र 642. तदग्नि सदृश द्रव्यान्तराऽपेक्षयावसेयं संभवन्ति तथाविध शक्तिमन्ति द्रव्याणि तेजोलेश्याद्रव्यवदिति।) विद्युत् अग्नि है या नहीं-इस प्रश्न पर विचार करते समय हमें भगवती के उस नियम को भी ध्यान रखना चाहिए-वायुकाय के बिना अनिकाय प्रज्वलित नहीं होता। न विणा वाऊकाएण अगणिकाए उज्जलति। (भगवई 16/5) निष्कर्ष उक्त विवरण का निष्कर्ष यह है-विद्युत् ऊर्जा है। इसे काष्ठविहीन अग्नि भी कहा जा सकता है। जैसे तेजोलेश्या के प्रयोग के समय तेजोलब्धि संपन्न व्यक्ति के मुख से निकलने वाली ज्वाला को अग्नि कहा जा सकता है, वैसे ही विद्युत् को अग्नि कहा जा सकता है। जैसे नरक में होने वाली ऊर्जा को अग्नि कहा गया है, वैसे ही विद्युत् की ऊर्जा को अग्नि कहा जा सकता है। जैसे तेजोलेश्या के तैजस परमाणुओं से उत्पन्न ऊर्जा अचित्त है और जैसे नरक में होने वाले तैजस परमाणुओं की ऊर्जा अचित्त है, वैसे ही विद्युत् की तैजस परमाणुओं से उत्पन्न ऊर्जा अचित्त है। तुलसी प्रज्ञा अक्टूबर-दिसम्बर, 2002 - - 23 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524613
Book TitleTulsi Prajna 2002 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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