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________________ विद्युत् : सचित्त या अचित्त? आगमों के आधार पर - आचार्य महाप्रज्ञ विद्युत् सचित्त है या अचित्त? इस विषय का चिन्तन बहुत वर्ष पहले हुआ। अनेक साक्ष्यों के आधार पर हम इस निर्णय पर पहुंचे कि विद्युत सचित्त नहीं है। यह निर्णय पूज्य आचार्यश्री तुलसी की सन्निधि में हो गया था। वह निर्णय हमारे पास सुरक्षित था। हमने उसका विशेष प्रचार भी नहीं किया। इन चार-पांच वर्षों में हमारे सामने कुछ प्रश्न, कुछ जिज्ञासाएँ और कुछ समस्याएँ आईं, इसलिए हमें अनेक बार उनका समाधान करना पड़ा। बिजली को अचित्त बताने के लिए हमने कोई अभियान शुरू नहीं किया है, किन्तु आने वाले प्रश्नों का समाधान प्रस्तुत किया है। कुछ जैन मुनि विद्युत् (बैटरी) द्वारा संचालित घड़ी का स्पर्श नहीं करते। जिसके हाथ में वैसी घड़ी बंधी हो, उसके हाथ से भिक्षा नहीं लेते। वैसी घड़ी को बांधकर व्यक्ति सामायिक भी नहीं कर सकता, साधुओं का चरण-स्पर्श भी नहीं कर सकता। तेरापंथ में बैटरी संचालित घड़ी का स्पर्श करना वर्जित नहीं है और सामायिक करना भी वर्जित नहीं है। इस द्वैध के विषय में हमारे सामने प्रश्न आए तब हमें उसका समाधान करना आवश्यक लगा और हमने किया भी। विद्युत् के संदर्भ में हमने सचित्त-अचित्त के प्रश्न पर समग्रता से विमर्श किया है। विद्युत् : सचित्त या अचित्त ? वर्तमान युग बिजली का युग है। इस विषय में दो प्रश्न उपस्थित होते हैं1. बिजली अग्नि है या नहीं? 2. बिजली सचित्त है या अचित्त? इस विषय पर विभज्यवादी शैली से विचार करना आवश्यक है। अग्नि के मुख्य धर्म पांच हैं-1. ज्वलनशीलता, 2. दाहकता, 3. ताप, 4. प्रकाश, 5. पाक शक्ति। नरक में जो अग्नि है वह ज्वलनशील भी है (सूयगड़ो 1/5/11) । दाहक भी है (सूयगड़ो 1/5/12)। उसमें ताप (सूयगड़ो 1/5/13) और प्रकाश भी है (सूयगड़ो 1/5/14)। पाक शक्ति भी है (सूयगड़ो 1/5/15)। फिर भी वह निर्जीव है, अचित्त है। सजीव अग्निकाय सिर्फ मनुष्य क्षेत्र में होता है। मनुष्य क्षेत्र से बाहर सजीव अग्नि नहीं होती। उसे सूत्रकृतांग में अकाष्ठ अग्नि-ईंधन के बिना होने वाली अग्नि बताया गया है। (सूयगड़ो 1/5/38) मनुष्य लोक में भी अचित्त अग्नि होती है। उसका उदाहरण है तेजालेश्या । भगवती के एक प्रसंग से यह विषय स्पष्ट होता है 22 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 118 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524613
Book TitleTulsi Prajna 2002 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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