SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शुद्धात्म स्तवनम् – ब्र.पं. सच्चिदानंद वर्णी श्रीमद् वर्ण गणेशाष्टकम् - पं. ठाकुरदास शास्त्री पौराष्टकम् - पं. ठाकुरदास शास्त्री हरिभकामर ..... • कवीन्द्र सागर मृरि नेमिनाथ प्रतिः -- मुनि मोहनलाल 'शार्दूल' वर्णी सूर्य: पं. अमृतलाल दर्शनाचार्य देवगुरु द्वात्रिंशिका मुनि छत्रमल भिक्षु द्वात्रिंशिका - मुनि छत्रमल तुलसी द्वात्रिंशिका - मुनि छत्रमल ---- देवगुरु धर्म- द्वात्रिंशिका - मुनि धनराज ( प्रथम ) नम्यते मुनिवरप्रमुखाय तस्मै - डॉ. दामोदर शास्त्री -- जैन पादपूर्ति - साहित्य पादपूर्तिकाव्य की रचना करना कोई सामान्य कार्य नहीं। इस विशिष्ट कार्य में मूलकाव्य के मर्म को हृदयङ्गम करने के साथ-साथ रचयिता में उत्कृष्ट कवित्वशक्ति, असाधारण पाण्डित्य, भाषा पर पूर्ण अधिकार एवं नवीन अर्थों को उद्भावन करने वाली प्रतिभा की परम आवश्यकता होती है। वह इसलिए भी कि दूसरे की पदावलियों को उनके भाव, अर्थ एवं लालित्य के गुणों के साथ अपने ढांचे में ढालना अति दुष्कर एवं उलझनों से भरा कार्य है और उसमें सफलता के लिए उपर्युक्त गुण होना अति आवश्यक है। जो कवि मूल पदों के भावों के साथ अपने भावों का जितना अधिक सुन्दर संमिश्रण कर सकता है और ऐसे कार्य में सहज प्राप्त होने वाली क्लिष्टता और नीरसता से अपने काव्य को बचा सकता है, वह कवि उतनी ही अधिक मात्रा में सफल कहलाने का गौरव प्राप्त कर सकता है। जिस पादपूर्तिकाव्य का अध्ययन करते समय काव्यमर्मज्ञ भी पादपूर्ति का भान न कर मौलिक उत्कृष्ट काव्य का रसास्वादन करने लगे, वहां ही कवि की सफलता है। ऋषभ भक्तामर शांति भक्तामर नेमिभक्तामर (प्राणप्रियकाव्य) मिभक्तामर जैन धर्मवर स्तोत्र वीरभक्तामर सरस्वती भक्तामर जिनभक्तामर पूज्यायिकां रत्नमतीं नमामि – डॉ. दामोदर शास्त्री गणेशाष्टकम् - आचार्य गोपीलाल 'अमर' गोपाल अडणं- डॉ. नेमीचन्द्र 'ज्योतिषाचार्य' अहारतीर्थ स्तोत्रम -- पं. गोविन्द्रदास 'कोठिया' चन्दाद्रुगं चन्द्राष्टकम् -रज्जनसूरि देव श्री चन्द्रसागर स्तुतिः पं. इन्द्रलाल शास्त्री श्री रत्नमतीमातुः स्तुतिः - कु. माधुरी शास्त्री विद्यासागर स्तवनम् पं. भुवनेन्द्रकुमार जैन, खुरई सरस्वती वन्दनाष्टकम् - पं. दयाचंद साहित्याचार्य अहारतीर्थ स्तवनम् - पं. बारेलाल जैन ' राजवैद्य' भक्तामर स्तोत्र पर पादपूर्ति के रूप में प्रमुख स्तोत्र आत्मभक्तामर श्री वल्लभ भक्तामर कालू भक्तामर सुन्द्रभक्तामर तुलसी प्रज्ञा अप्रैल-सितम्बर, 2002 Jain Education International -महोपाध्यायसमयसुन्दर (चतुर्थ चरण की पादपूर्ति) - लक्ष्मी विमल (चतुर्थपाद की पूर्ति ) - रत्नसिंह सूरि भावप्रभसूर धर्मवर्धन गणि धर्मसिंह सूरि अज्ञात आत्मराग - विचक्षण विजय - मुनि कानकल - चतुर विजय For Private & Personal Use Only 83 www.jainelibrary.org
SR No.524611
Book TitleTulsi Prajna 2002 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy