________________
दादा पार्श्वभक्तामर
--- राजसुन्दर पार्श्वभक्तामर
- विनयलाभ आत्मभक्तामर
----- आत्मराय श्रीवल्लभ भक्तामर
--- विचक्षणविजय
कल्याणमन्दिर स्तोत्र की पादपूर्ति जैनधर्मवरस्तोत्र
--- भावप्रभसूरि (चतुर्थचरा की पादपूर्ति वि.सं. 1781) पार्श्वनाथ स्तोत्र
अज्ञात विजयानन्दसुरीश्वर स्तवन – अज्ञात
जैनेतर स्तोत्र-व्याकरणादि की पादपूर्ति शिवमहिम्नस्तोत्र की पादपूर्ति में रत्नशेखरसूरिकृत ऋषभमहिम्नस्तोत्र कलापव्यकरणसंधिगर्भितस्तव - इसमें 'सिद्धोवर्ण समानाय' आदि कलापव्याकरण के संधिसूत्रों की पादपूर्ति में 23 पद्य रचे गये हैं। शंखेश्वरपार्श्वस्तुति – इसके प्रथम चार पद्यों में अमरकोष के प्रथम शोक के चारों चरणों को बड़ी कुशलता के साथ समाविष्ट किया गया है। प्रथम पद्य केप्रथम चरण में अमरकोश के प्रथम थोक का प्रथम चरण, द्वितीय पद्य के द्वितीय चरण में उसका दूसरा चरण, तृतीय पद्य के तृतीय चरण में उसका तृतीय चरण तथा चतुर्थ पद्य के चतुर्थ चरण में उसका चतुर्थ चरण है।
समस्यापूर्ति स्तोत्र काव्य कल्याण मंदिर के पृथक्-पृथक् चरण लेकर कल्याण मदिर स्तात्रों की रचनाएँ की
-आचार्य तुलसी, मुनि धनराज (प्रथम), चन्दनमुनि, श्री धनमुनि कल्याण मन्दिर स्तोत्र की पाद पूर्ति श्रीकालूकल्याणमन्दिर स्तोत्र – मुनि नथमल (बागौर) भक्तामर स्तोत्र की पाद पूर्ति ' श्री कालु भक्तामर' – मुनि कानमल्ल भक्तामर स्तोत्र की पादपूर्ति श्री कालु भक्तामर' - पं. गिरधर शर्मा कल्याण मन्दिर की पादपूर्ति ( श्री कालु कल्याण मन्दिर स्तोत्र) --- पं. गिरधर शर्मा कल्याण मंदिर और भक्तामर की पादपूर्ति श्री कालु भक्तामर' - मुनि सोहनलाल
इस प्रकार द्वितीय शताब्दी से लेकर बीसवीं शताब्दी तक जैन कवियों ने संस्कृत में स्तोत्रों का प्रणयन कर स्तोत्र परम्परा को अक्षुण्ण बनाये रखा तथा सहस्राधिक स्तोत्रों की रचना कर संस्कृत जैन स्तोत्र परम्परा के विकास में अपना अभिनन्दनीय अवदान दिया।
अनेक ऐसे स्तोत्र काव्य हैं, जो बिखरे पड़े हैं। अनेक तो ऐसे हैं, जिनका इतिहासग्रन्थों में वर्णन तक नहीं है। इस लघु-निबंध में सभी स्तोत्रों के नामों का संग्रह संभव नहीं। कुछ स्तोत्र तो मात्र चार-पाँच पद्यों के रूप भी लिखे गये हैं जिनको इस संग्रह में स्थान नहीं दिया गया है। वस्तुतः यह विषय स्वतंत्र शोध-प्रबन्धन की अपेक्षा रखता है।
तुलसी प्रज्ञा अंक 116-117
84
.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org