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________________ 7. पंचम प्रकरण में प्राणायाम का 27 सूत्रों में विशद विवेचन किया जो उसके महत्त्व का सूचक है। इसे जैनाचार्यों ने भी स्वीकार किया है। इस प्रकरण में जिस कुशलता से आचार्यश्री ने प्राणायाम के प्रकार, वर्ण, स्थान, ध्वनि, बीज, किस स्थान पर निरोध से क्या लाभ होता है ? आदि का विवेचन किया, जो अपने आप में विशिष्ट है । प्राणायाम के लिये एक स्वतंत्र प्रकरण का प्रणयन इस बात का भी द्योतक है कि योगांगों में उसका कितना महत्त्व है ? आचार्य की दृष्टि में चित्त (मन) प्राणायाम से ही स्थिर होता है।" 8. षष्ठम प्रकरण में योगांगों में यम के नाम से प्रसिद्ध पञ्च महाव्रतों की मीमांसा की गई है। इनको साधना के साधन मानने के स्थान पर साध्य मान लिया गया है। आचार्यश्री मन के नियमन से प्रारम्भ की गई यात्रा को ध्यान की सामग्री, ध्याता, ध्याता के भेद, धारणा, समाधि और प्राणायाम से बढ़कर पंच महाव्रतों और श्रमण धर्म'' के रूप में नियमों की सिद्धि तक ले आये हैं। इसी प्रकरण में समाधि से प्राप्त होने वाली 'अहं ब्रह्मरूपाऽस्मि' की भावना के समान ज्योतिर्मयोऽहं, आनन्दमयोऽहं, निर्विकारोऽहं, वीर्यवानहं की भावना का उदय दिखाया जो आत्मा के विकास की अन्तिम सीढ़ी है। (a) सप्तम प्रकरण तो एक प्रकार से साधना से होने वाली फल-क्षति के समान जिन भावना का उदय" और कायोत्सर्ग का विवेचन करता है। आचार्यश्री तुलसी ने 'मनोऽनुशासनम्' की रचना कर जैन जगत् की एक अलौकिक योगदृष्टि का विकास किया है। आचार्यश्री का 'मनोऽनुशासनम्' उसी प्रकार जैन योग का सूत्र ग्रन्थ सिद्ध होगा जिस प्रकार वैदिक योग दर्शन का सूत्र ग्रन्थ पतञ्जलि का योगसूत्र है। इन्होंने पतञ्जलि की शैली अपनायी, उनके विषय भी लिये परन्तु वे उन्होंने अपनी दृष्टि, अपने क्रम से प्रस्तुत किये हैं। एक तरह से उन्होंने योग को जैन तत्त्व मीमांसा के आलोक में देखकर तदनुरूप व्यवस्थित किया है, जो जैन एवं जैनेतर सभी साधकों के लिये उपयोगी है। आचार्यश्री तुलसी पर हेमचन्द्राचार्य और श्रीनागसेन मुनि आदि का पर्याप्त प्रभाव परिलक्षित होता है फिर भी उनकी अपनी सर्वातिशायी शेमुषी दृष्टि और सर्वंकषा प्रज्ञा ने 'मनोऽनुशासनम्' को एक नवीन रूप प्रदान किया है। संदर्भ सूची1. संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश-वामनशिवराम आप्टे. पृ. 1095 2. पुष्कर मुनि अभिनन्दन ग्रंथ, जमनालाल जैन-जैनसाधना का रहस्य, पृ. 417-418 3. प्राणायाम : प्रत्याहारो : ध्यानं धारणा तर्क : समाधि षड्ग इत्युच्यते। 6/18 यमनियमासनप्रणायामप्रत्याहार धारणध्यानसमाधयोऽष्टा वांगानि। योगसूत्र-2/29 5. उत्तराध्ययनसूत्र, 28/2 6. मनोऽनुशासनम् - आचार्य तुलसी, पृ. 14 52 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 116-117 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524611
Book TitleTulsi Prajna 2002 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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