SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रत्येक पदार्थ में अवकाश होता है। परमाणु भी अवकाशशून्य नहीं है। अवकाशान्तर का यह सिद्धान्त आधुनिक विज्ञान द्वारा समर्थित है । परमाणु के दो भाग हैं - इलेक्ट्रोन और प्रोट्रोन । इन दोनों के बीच एक अवकाश विद्यमान रहता है। दुनिया के समस्त पदार्थों में से यदि अवकाश को निकाल लिया जाए तो उसकी ठोसता आंवले के आकार से वृहत् नहीं होती । " लोक सुप्रतिष्ठिक आकार वाला है। तीन शरावों में से पहला शराव ओंधा, दूसरा सीधा और तीसरा उसके ऊपर ओंधा रखने से जो आकार बनता है, उसे सुप्रतिष्ठिक संस्थान या त्रिशरावसंपुट संस्थान कहा जाता है। लोक नीचे विस्तृत है, मध्य में संकरा और ऊपर विशाल है ।" क्षेत्रलोक तीन भागों में विभक्त है – ऊर्ध्व लोक, अधो लोक और मध्य लोक 150 भगवती में इन तीनों प्रकार के क्षेत्रलोक का विस्तार से वर्णन भी उपलब्ध है ।" लोक चार प्रकार का है - द्रव्यलोक, क्षेत्रलोक, काललोक एवं भावलोक । द्रव्यलोक एक और सांत है 2 द्रव्यलोक पंचास्तिकायमय एक है, इसलिए सांत है। लोक की परिधि असंख्य योजन कोड़ाकोड़ी की है, इसलिए क्षेत्रलोक भी सांत है। लोक पहले था, वर्तमान में है और भविष्य में रहेगा, इसलिए काललोक अनन्त है। S लोक में वर्ण, गंध, रस, स्पर्श एवं संस्थान के पर्यव अनन्त हैं तथा बादर स्कन्धों की गुरु-लघु पर्यायें, सूक्ष्म स्कन्धों और अमूर्त द्रव्यों की अगुरु-लघु पर्यायें अनन्त हैं, इसलिए भाव - लोक अनन्त हैं 1 जो दिखाई देता है, वह लोक है । " जे लोक्कइ से लोए" " भावलोक पर्याय रूप है वह स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा है। जो दिखाई देता है, वह लोक है, इसलिए भावतः लोक का निरूपण वर्ण, गंध आदि के पर्यवों से किया गया है। पर्यव दो प्रकार के होते हैं - स्वभाव पर्यव और विभाव पर्यव । जीव और पुदगल में दोनों प्रकार के पर्यव रहते हैं। शेष द्रव्यों में स्वभाव पर्यव होता है। वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श ये पुदगल के स्वभाव पर्यव हैं। एक परमाणु या स्कन्ध एक गुण काले रंग वाला यावत् अनन्तगुण काले रंग वाला हो जाता है। इसी प्रकार गंध, रस और स्पर्श में भी स्वाभाविक परिणमन होता रहता है। गुरु लघुपर्यव पुद्गल और पुद्गलयुक्त जीव में होता है। इसका सम्बन्ध स्पर्श से है। अगुरुलघु पर्यव एक विशेष गुण या शक्ति है। इस शक्ति से द्रव्य का द्रव्यत्व बना रहता है। चेतन अचेतन नहीं होता और अचेतन चेतन नहीं होता, इस नियम का आधार अगुरुलघु पर्यव ही है। इसी शक्ति के कारण द्रव्य के गुणों में प्रतिसमय षट्स्थानपतित हानि और वृद्धि होती रहती है। इस शक्ति को सूक्ष्म, वाणी से अगोचर, प्रतिक्षण वर्तमान और आगम प्रमाण से स्वीकारणीय बतलाया गया है। द्रव्यानुयोग तर्कणा में द्रव्य के दस सामान्य धर्म बतलाए हैं, उनमें एक अगुरुलघु है । उसको सूक्ष्म एवं वाणी का अगोचर माना गया है | 9 पदार्थ दो प्रकार के होते हैं - भारयुक्त और भारहीन । भार का सम्बन्ध स्पर्श से है। वह पुद्गल द्रव्य का एक गुण है। शेष सब द्रव्य भारहीन अगुरुलघु होते हैं । पुद्गल द्रव्य तुलसी प्रज्ञा अंक 116-117 8 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524611
Book TitleTulsi Prajna 2002 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy