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________________ ऐसे में गांधी-अहिंसा की प्रासंगिकता पर प्रश्र चिह्न लग जाता है कि जब धर्म का ही इस्तेमाल हिंसात्मक तरीके से होने लग जाये तो अहिंसा का पाठ किसे पढ़ाया जाये? आतंकवाद के दो रूप मुख्यत: देखने को मिलते हैं-1. जेहादी आतंकवाद, 2. आत्मघाती आतंकवाद । पहले में धर्म का इस्तेमाल जेहाद के नाम किया जा रहा है, तो दूसरे आतंकवाद में आतंकवादी स्वयं अपने प्राणों की चिन्ता किये बिना आतंकी हिंसा फैला रहे हैं। जब व्यक्ति स्वयं मरने एवं मारने पर ही उतारू हो जाए तो ऐसी स्थिति में अहिंसा का पाठ किसे पढ़ाया जाये? भारत, चेचन्या, फीलीपीन्स एवं कोसावों में जेहाद के नाम पर प्रतिदिन हिंसात्मक गतिविधियां जारी हैं। गांधीजी हृदयपरिवर्तन की बात करते हैं किन्तु जब व्यक्ति बिना किसी भय, बिना किसी चिन्ता के हिंसा करने पर उतारू है तो ऐसी स्थिति में उसका हृदयपरिवर्तन करना बड़ा मुश्किल कार्य है। आज मानव का आत्म-चिन्तन करना अनिवार्य है। नैतिक मूल्यों को केन्द्रीय तत्त्व मानते हुए जेहादी युवकों की मूल समस्याओं की पहचान करनी होगी। इसके लिए राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों, सामाजिक संस्थानों को आगे आना होगा, क्योंकि इस समय सम्पूर्ण मानव जाति संकट में है। आतंकी युवकों की मूलभूत समस्याओं का न्यायोचित समाधान करके ही उनको अहिंसा का पाठ पढ़ाया जा सकता है। जिससे व्यक्ति को व्यक्ति से एवं राष्ट्र को राष्ट्र से जोड़ा जा सकता है और विश्व में शांति स्थापित की जा सकती है। संदर्भ सूची 1. हरिजन, 07-09-1935 2. नवजीवन, 31 मार्च, 1929 3. प्रभा बेन का लिखा पत्र, 5 फरवरी, 1932 4. कलैक्टेड वर्क्स ऑफ महात्मा गांधी, खण्ड 50, पृ. 207 5. वही, खण्ड 50, पृ. 212 6. वही, खण्ड 50, पृ. 212 7. हरिजन, 19 दिसम्बर, 1936 8. यंग इण्डिया, 31 अक्टूबर, 1929 9. यंग इण्डिया, 3 जनवरी, 1929 10. कलैक्टेड वर्क्स ऑफ महात्मा गांधी, खण्ड 44, पृ. 187 11. हरिजन, 1 त्तिम्बर, 1940 12. गोपीनाथ धवन, सर्वोदय-दर्शन पृ. 11 13. गांधी मार्ग, मई-जून 1989, पृ. 11 14. नवजीवन, 21 जुलाई 1929 15. हरिजन, 30 अप्रैल 1938 राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर (राजस्थान) 62 - तुलसी प्रज्ञा अंक 115 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524610
Book TitleTulsi Prajna 2002 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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