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जागृत अहिंसा वह है जो व्यक्ति में अन्तरात्मा की पुकार पर स्वाभाविक रूप से जन्म लेती है। इसे व्यक्ति अपने आन्तरिक विचारों की उत्कृष्टता अथवा नैतिकता के कारण स्वीकार करता है। इस प्रकार की अहिंसा में असंभव को भी सम्भव में बदल देने की अपार शक्ति निहित होती है। औचित्यपूर्ण अहिंसा वह है जो जीवन के किसी क्षेत्र विशेष आवश्यकता पड़ने पर औचित्यानुसार एक नीति के रूप में अपनाई जाए । यद्यपि यह अहिंसा दुर्बल व्यक्ति की है पर यदि इसका पालन ईमानदारी और दृढ़ता से किया जाए तो यह काफी शक्तिशाली और लाभदायक सिद्ध हो सकती है। भीरूओं की अहिंसा डरपोक और कायरों की अहिंसा है, निष्क्रिय अहिंसा है। अत: कायरता
और अहिंसा पानी तथा आग की भांति एक साथ नहीं रह सकते। गांधी-अहिंसा की प्रासंगिकता पर प्रश्न चिह्न, जेहादी हिंसा
वर्तमान में विश्व के समक्ष आतंकवाद की समस्या मुंह फाड़े खड़ी हुई है। आतंकवाद क्या है ? इसकी आज तक सर्वसम्मत् परिभषा नहीं दी गई है। कोई इसको एक प्रवृत्ति मानता है, तो कोई अपनी बात, अपने मत, अपने विचार को दूसरों से हिंसा के द्वारा मनवाने को आतंकवाद कहता है । अत: आतंकवाद आतंकवादी की वह प्रवृत्ति है, जिससे वह अपनी मांगें मनवाने के लिए चरम हिंसा का प्रयोग करके व्यक्ति विशेष, समाज या किसी सरकार पर दबाव डाले अर्थात् आतंकवाद का आशय अपनी मांगें मनवाने के लिए बल प्रयोग से है। परन्तु सामज ने इसमें कुछ अपवाद भी माने हैं-1. सुरक्षा हेतु की गई हिंसा। 2. शांति के नाम पर की गई हिंसा। 3. एक राष्ट्र का दूसरे राष्ट्र से युद्ध इत्यादि। आतंकवाद और युद्ध विरोधी लोग आतंकवाद को सामाजिक कलंक या पाप आरोपित कहते हैं।
गांधीजी ने संकीर्ण अर्थ को स्वीकार नहीं किया बल्कि उनकी दृष्टि में धर्म शाश्वत और सार्वभौम नैतिक नियमों का संग्रह है। उन्होंने कहा, मेरे मत में धर्म का अर्थ है नैतिकता। मैं ऐसे किसी धर्म को नहीं मानता जो नैतिकता का विरोध करता हो या नैतिकता के परे कोई उपदेश देता हो। धर्म तो वास्तव में नैतिकता को व्यवहार में घटित करने की पराकाष्ठा है। अत: नैतिकता धर्म का केन्द्र बिन्दु है । गांधीजी किसी धर्म विशेष को महत्त्व न देकर सभी धर्मों को समान महत्त्व देते थे। उन्होंने कहा कि विभिन्न धर्म तो एक ही लक्ष्य को प्राप्त करने के विभिन्न मार्ग हैं। जब हमारा लक्ष्य एक ही है तो इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम उसकी प्राप्ति के लिए अलगअलग रास्तों पर चल रहे हैं । अत: गांधीजी सभी धर्मों के प्रति समान भाव रखते थे।
वर्तमान के इस आतंकवादी युग में धर्म की व्याख्या उसके अनुयायी लोग अपनी सुविधा के अनुसार कर रहे हैं । विश्व के इस्लाम देशों में विभिन्न प्रकार के जेहादी नारे दिये जा रहे हैं। इनका मानना है कि इस्लाम खतरे में है, इसलिए जेहाद करो अर्थात् इस्लाम को बचाने के लिए काफिरों को मारो और अल्लाह के पास स्वर्ग में स्थान सुरक्षित करो। इनका यह भी मानना है कि अन्य धर्मों के कारण हमारा इस्लाम संकट में है, इसलिए इसको हिंसा करके बचाओ। गांधीजी राजनीति के आध्यात्मीकरण की बात करते थे जबकि वर्तमान में धर्म का राजनीतिकरण हो गया है। इजराइल जो कि ईसाई, यहूदी एवं इस्लाम धर्म की जन्मस्थली रहा है, वहां पर भी एक धर्म की दूसरे से टकराहट पैदा हो गई है और उसमें हिंसा का प्रवेश हो चुका है। इसमें दोष धर्म का नहीं बल्कि मानव विचारों का है। तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2002
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