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________________ 58 गांधी - चिन्तन में अहिंसा एवं उसकी प्रासंगिकता ( जेहादी हिंसा के सन्दर्भ में) - राजेन्द्रसिंह गुर्जर गांधी चिंतन का केन्द्रीय तत्त्व सत्य व अहिंसा है। सत्य का अर्थ है - जिसकी सत्ता है, जो शाश्वत है। सत्य को एक निरपेक्ष सत्ता के रूप में स्वीकार किया गया। उन्होंने सत्य की महत्ता को स्वीकारते हुए 'ईश्वर सत्य है' के स्थान पर 'सत्य ही ईश्वर है' कहना अधिक उपयुक्त समझा। गांधीजी के अनुसार निरपेक्ष सत्य सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान और शाश्वत है। अहिंसा का अर्थ स्पष्ट करते हुए बताया कि अहिंसा हिंसा न करना ही नहीं है बल्कि मनसा, वाचा व कर्मणा से अन्य किसी भी जीव को हानि या ठेस न पहुंचाना है । व्यक्ति सभी जीवों के प्रति सदैव दयालुता पूर्ण व्यवहार करे तथा अन्य के प्रति प्रेम, स्नेह एवं सद्भावपूर्ण व्यवहार करे। समग्र रूप में देखा जाये तो गांधीजी की विचारधारा, उनका चिन्तन सत्य तथा अहिंसा पर टिका हुआ था । उनकी विचारधारा सत्य और लोककल्याण की ओर जाने वाली थी । अत्याचार के विरुद्ध अहिंसा तथा सत्य को ही प्रभावशाली एवं अमोघ शस्त्र उन्होंने स्वीकार किया । गांधीजी के अनुसार अहिंसा वह साधन है, जिसके द्वारा सत्य की साधना की जा सकती है। गांधीजी ने स्पष्ट किया कि सत्य की प्राप्ति के लिए अहिंसा अनिवार्य साधन है। अत: अहिंसा स्वयं में साध्य नहीं होते हुए भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि उसके बिना सत्य की साधना ही असंभव है। अहिंसा गांधीजी का आविष्कार नहीं है। बल्कि अहिंसा का आदर्श भारतीय उपनिषदों, बुद्ध तथा महावीर स्वामी के दर्शन में शताब्दियों पहले प्रतिपादित किया गया था । अहिंसा के सम्बन्ध में गांधीजी का योगदान रहा है कि उन्होंने नवीन संदर्भ में अहिंसा के सिद्धान्त को परिमार्जित किया और मानवीय आचार की एक जीवन्त नियम के रूप में पूर्ण व्याख्या की। तुलसी प्रज्ञा अंक 115 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524610
Book TitleTulsi Prajna 2002 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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