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________________ उपजातियों में साग्रह बांट दिया गया था, वे भेद के बन्धन टूट सकेंगे। भारत में आज भी साम्प्रदायिक उन्माद हो रहे हैं। धर्म के नाम पर ही इस देश का विभाजन हुआ और आज भी विभाजन की मांग प्रतिदिन उठती रहती है । कहना न होगा कि साम्प्रदायिक संकीर्णता वैचारिक असहिष्णुता को उभारती है। इस संदर्भ में भगवान् महावीर के अनेकान्तवाद का सिद्धान्त आधुनिक समाजवादी धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा के निकटवर्ती होने के साथ ही वैयक्तिक तथा सामाजिक एवं राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय विचारों को स्वस्थ बनाने में अधिक प्रभावकारी है। वस्तुतः आज भी महावीर के सिद्धान्त भावी विनाश से हमारी रक्षा कर सकता है, इसलिए इसकी प्रासंगिकता निर्विवाद है। सन्दर्भ ग्रंथ सूची 1. तत्त्वार्थ सूत्र 5/21 2. उत्तराध्ययन सूत्र 20 : 37 3. ईशावास्योपनिषद्-1 4. गीता 5. रामचरित् मानस 6. उत्तराध्ययन 25 : 29 7. तत्त्वार्थसूत्र 6/25 8. समराइच्चकहा शोध छात्र जैनविद्या एवं प्राकृत विभाग सामाजिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर-313001 (राजस्थान) तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2002 57 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524610
Book TitleTulsi Prajna 2002 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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