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सद्गुणों को ढांकना तथा स्वयं के अस्तित्वहीन सद्गुणों को प्रकट करना नीच गोत्र की स्थिति के कारण बनते हैं
"परात्मनिन्दाप्रशंसे सदसदगुणाच्छादनोद्भावने च नीचैर्गोत्रस्य'"
इस प्रकार जैन दर्शन में यह मार्ग बतलाया गया है जिसमें व्यक्ति अपने बल पर उच्चतम विकास कर सकता है, प्रत्येक आत्मा अपने बल पर परमात्मा बन सकती है।
उपनिषदों में जिस तत्वमसि' सिद्धान्त का उल्लेख हुआ है उसी का जैनदर्शन में नवीन आविष्कार एवं विकास है एवं प्राणी मात्र की पूर्ण स्वतंत्रता, समता एवं स्वावलम्बित स्थिति का दिग्दर्शन कराया गया है।
जैन दर्शन अनेकान्तवादी दृष्टि पर आधारित होने के कारण किसी विशेष आग्रह से अपने को युक्त नहीं करता। सत्यानुसंधान एवं सहिष्णुता की पहली शर्त अनेकान्तवादी दृष्टि है। पक्षपात रहित व्यक्ति की बुद्धि विवेक का अनुगमन करती है। आग्रही पुरुष तो अपनी प्रत्येक युक्ति को वहां ले जाता है, जहां उसकी बुद्धि सन्निविष्ट रहती है
आग्रही वत निनीषति यक्तिं तत्र यत्र पतिरस्य निविष्टा ।
पक्षपात रहितस्य तु युक्तिर्यत्र तत्र पतिरेति निवेशम्॥ आज के युग में वैज्ञानिक भौतिकवादी दर्शन एवं आध्यात्मिक दर्शन के सम्मिलन की अत्यधिक आवश्यकता है। इस दृष्टि से दर्शन के अद्वैत एवं विज्ञान के सापेक्षवाद की सम्मिलन भूमि जैन दर्शन का अनेकान्त हो सकती है।
भगवान् महावीर ने जिस जीवन दर्शन को प्रतिपादित किया है वह आज के मानव की मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक दोनों प्रकार की समस्याओं का अहिंसात्मक पद्धति से समाधान प्रस्तुत करता है। यह दर्शन आज के प्रजातांत्रिक शासन व्यवस्था एवं वैज्ञानिक सापेक्षवादी चिन्तन के भी अनुरूप है । इस सम्बन्ध में सर्वपल्ली राधाकृष्णन का यह वाक्य कि "जैनदर्शन सर्वसाधारण को पुरोहित के समान धार्मिक अधिकार प्रदान करता है" अत्यन्त संगत एवं सार्थक
है।
'अहिंसा परमो धर्मः' चिन्तन को केन्द्र मानने पर ही संसार से युद्ध एवं हिंसा का वातावरण समाप्त हो सकता है। आदमी के भीतर की अशांति, उद्वेग एवं मानसिक तनावों को दूर करना है तथा अन्ततः मानव के अस्तित्व को बनाये रखना है तो भगवान् महावीर की वाणी को वर्तमान युगीन समस्याओं एवं परिस्थिति के सन्दर्भ में व्याख्या करनी होगी। यह ऐसी वाणी है जो मानव मात्र के लिए समान मानवीय मूल्यों की स्थापना करती है। सापेक्षवादी सामाजिक संरचनात्मक व्यवस्था का चिन्तन प्रस्तुत करती है। पूर्वाग्रह हित उन्मुक्त दृष्टि से दूसरों को समझने एवं अपने को समझाने के लिए अनेकान्तवादी जीवनदृष्टि प्रदान करती है। समाज के प्रत्येक सदस्य का समान अधिकार एवं स्वप्रयत्न से विकास करने के समान साधन जुटाती है।
महावीर के दर्शन क्रियान्वयन से परस्पर सहयोग, सापेक्षता, समता एवं स्वतंत्रता के आधार पर समाज संरचना सम्भव हो सकेगी, समाज के जिन वर्गों, वादों, वर्णों, जातियों एवं
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तुलसी प्रज्ञा अंक 115
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