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________________ स्थूल और परम्परागत अर्थ में अहिंसा एक नकारात्मक शब्द है जिसका अर्थ है हिंसा न करना अथवा हिंसा का अभाव। किन्तु गांधीजी अहिंसा के नकारात्मक अर्थ को अपूर्ण मानते थे। उन्होंने अहिंसा के नकारात्मक और सकारात्मक दोनों पक्षों पर बल दिया और स्पष्ट किया कि अहिंसा का मर्म किसी को क्षति न पहुंचाने की स्थूल व भौतिक क्रिया की अपेक्षा इस क्रिया के पीछे विद्यमान मन्तव्य में निहित है। इस प्रकार नकारात्मक या निषेधात्मक विचार के रूप में अहिंसा का अर्थ है-किसी भी प्राणी को विचार, शब्दों या कार्यों से हानि न पहुंचाना। किन्तु यह नकारात्मक अर्थ तभी पूर्ण होता है जबकि इसके मूल में इस नियम की सकारात्मक प्रेरणा प्राणी मात्र के प्रति निरपवाद प्रेम आवश्यक रूप से विद्यमान हो। गांधीजी के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के प्रति जागृत प्रेम या करुणा अहिंसा का सटीक मापदण्ड है । उन्होंने उदाहरण दिया-यदि मैं किसी ऐसे व्यक्ति पर, जो मुझ पर आक्रमण करने आये, बदले में प्रहार न करूं तो मेरा यह कृत्य अहिंसक हो भी सकता है और नहीं भी। यदि मैं भय के कारण उस पर प्रहार न करूं तो यह निश्चित रूप से अहिंसा नहीं है। किन्तु यदि मैं पूर्णतया सचेतन होकर प्रहार करने वाले के प्रति करुणा और प्रेम के कारण उस पर हमला नहीं करता हूं तो यह निश्चित रूप से अहिंसा है। गांधीजी के अनुसार अहिंसा का सार शाश्वत प्रेम में समाविष्ट है। उन्होंने स्पष्ट किया कि अपने मित्रों और सम्बंधियों से प्रेम करना सहज भाव है। सच्चा अहिंसक दृष्टिकोण वह है जो व्यक्ति को अपने विरोधियों और शत्रुओं से भी प्रेम करने के लिए प्रेरित करे। उन्होंने कहा, अहिंसा उस व्यक्ति के प्रति प्रेम, संवेदना और सेवा के भाव में निहित है जिससे घृणा करने के लिए कारण उपस्थित हो। ऐसे व्यक्ति के प्रति प्रेम करने में अहिंसा निहित नहीं हैं, जो हमें प्रेम करता है, अपितु यह तो स्वाभाविक नियम है। गांधीजी के अनुसार सच्ची अहिंसा वह है जो निःस्वार्थ और निरपेक्ष हो। गांधीजी की मान्यता रही कि अहिंसा का विचार कोई जड़ सिद्धान्त नहीं है अपितु एक गुणात्मक और नैतिक आस्था है। अत: विशिष्ट परिस्थितियों में अहिंसा का नियम किसी को न मारने के स्थूल विचार की अपेक्षा, दूसरों के प्रति नि:स्वार्थ प्रेम और उन्हें पीड़ा व कष्ट से मुक्त करने की निर्मल प्रेरणा से निर्दिष्ट होता है। उन्होंने ऐसी परिस्थिति को स्वीकार किया जबकि किसी दूसरे प्राणी के शरीर को नष्ट कर देने अथवा उसके प्राण ले लेने को भी हिंसा न माना जाये। जब कुछ लोगों ने गांधीजी के इस निर्णय के अहिंसक होने में संदेह किया तो गांधीजी ने स्पष्ट किया कि किसी कृत्य को अहिंसक ठहराने के लिए दो शर्ते पूर्ण होनी आवश्यक हैं 1. ऐसे कृत्य के पीछे पवित्र उद्देश्य ही नहीं, सम्बंधित प्राणी का हित निहित होना चाहिए। 2. यह भली-भांति सुनिश्चित कर लिया जाना चाहिए कि उस प्राणी को भौतिक क्षति पहुंचाना उसके हित की पूर्ति के लिए एकमात्र संभव उपाय है तथा स्वयं उसके हित की पूर्ति उसे भौतिक रूप से क्षति पहुंचाने के अलावा अन्य किसी रीति से की ही नहीं जा सकती। गांधीजी के लिए अहिंसा आस्था व निष्ठा का विषय है, कोई व्यावहारिक नीति नहीं है। नीति व्यक्ति के स्वार्थपरक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए परिवर्तित की जा सकती है, किन्तु एक तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2002 3 59 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524610
Book TitleTulsi Prajna 2002 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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