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चेतावनी का विषय है-पर्यावरण चिन्तन का विषय है-पर्यावरण प्रदूषण चेतना का विषय है-पर्यावरण संतुलन एवं संरक्षण।
अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर इसके लिए शिखर वार्ताएं आयोजित होती रही हैं । चाहे वह १९७२ में स्टॉकहोम में आयोजित मानव-पर्यावरण-सम्मेलन हो या १९९२ में पृथ्वी सम्मेलन ।सभी में यह चिंता व्यक्त की गई कि जीवन और जगत् को पर्यावरण प्रदूषण से कैसे बचाया जाये?
आज की भोगवादी संस्कृति ने पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी को असंतुलित कर दिया है। जैनधर्म, संस्कृति और जैनाचार इस समस्या के समाधान के प्रति मूकद्रष्टा बनकर नहीं रहा है अपितु इसके समाधान के लिए प्रयत्नशील, मुखर भी है। असंतुलित पर्यावरण एवं मानव
(१) पर्यावरण प्रदूषण के संबंध में १९८० में अमरीकी राष्ट्रपति ने विश्व -२००० के प्रतिवेदन में कहा था-यदि पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रित न किया गया तो २०३० तक तेजाबी वर्षा, भूखमरी और महामारी का तांडव नृत्य होगा।
(२) उद्योगीकरण एवं नगरीकरण-अपने कूड़ा-करकट से नदियों के जल को प्रदूषित कर रहा है, जिससे जलीय जीव-जंतुओं के साथ-साथ मानव जीवन भी खतरे में है।
(३) वनों का सफाया होने से जीव-जंतुओं की अनेक प्रजातियां विलुप्त होती जा रही हैं । सन् १६०० से अब तक स्तनधारियों की लगभग १२० जातियां तथा पक्षियों की २२५ प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं तथा इस सदी के अंत तक वन्य प्राणियों की ६५० प्रजातियां विलुप्त होने की संभावना है।
वन विनाश के कारण वर्षा में कमी, बाढ़, भू-स्खलन, भू-क्षरण, मरुस्थलीकरण एवं अन्य पारिस्थितिक विक्षोभों में निरन्तर वृद्धि हो रही है।
(४) पृथ्वी तल से लगभग १०० कि.मी. की ऊंचाई पर ओजोन गैस की पारदर्शी रक्षापरत है जो पराबैंगनी और ब्रह्माण्ड किरणों जैसी घातक सौर-किरणों को पृथ्वी तक पहुंचने से रोकती है। कल-कारखानों, वाहनों, विमानों आदि के धुएं से ओजोन परत नष्ट हो रही है। जिनसे ओजोन परत पर घातक असर होता है। उत्तरी ध्रुव पर अंटार्कटिका के ऊपर एक ओजोनछिद्र नजर आने लगा है जो वैज्ञानिकों के लिए चिन्ता का विषय बन गया हैं।
(५) आणविक परीक्षणों से घातक रेडियोधर्मी प्रदूषण बढ़ रहा है। इससे अंतरिक्ष भी प्रदूषण से रहित नहीं रह पा रहा है।
विगत ५० वर्षों में पर्यावरण प्रदूषण इतना बढ़ गया है जितना पिछले ४०० वर्षों में भी नहीं बढ़ा था। इसका कारण मनुष्य द्वारा प्रकृति के संसाधनों का अतिशय दोहन है । भारत में या विश्व के देशों में आने वाले भूकंप का कारण वैज्ञानिकों ने भूमि के नीचे जल स्तर का गिर जाना बताया है। भूमि के बहुत नीचे शून्य पैदा हो जाने से ऐसी संहारक-घटनाएं संभव मानी गई हैं। तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2002 -
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