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कि अहिंसा कार्यकारी है, प्रश्न यह भी है कि क्या हिंसा भी कार्यकारी है ? और यदि दोनों ही कभी सफल होती हैं और कभी असफल तो क्या अहिंसा हिंसा से अच्छा विकल्प नहीं है ??
अगर अहिंसा हिंसा का अच्छा विकल्प है तो इसका प्रयोग युक्ति के रूप में होना चाहिए या दर्शन या जीवनशैली के रूप में? जब हम इसे मात्र युक्ति मानते हैं तो अहिंसा कभी कार्यकारी है और कभी नहीं। इसकी सफलता की गारन्टी हिंसा के प्रयोग से अधिक नहीं है किन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि अहिंसा हिंसा से अधिक कार्यकारी नहीं। यह अनुमान करना सहज है कि हिंसा का त्याग एक व्यक्ति को अपने लक्ष्य प्राप्ति के संदर्भ में लाभ की स्थिति में रखता है। यह तो माना ही नहीं जा सकता कि अहिंसा का विरोध हिंसा से कहीं अधिक नैतिक है।
अब हम अहिंसा को एक सिद्धान्त के रूप में मानते हुए इसकी प्रभावशीलता पर विचार करें। इस प्रश्न पर विचार के लिए यह आवश्यक है कि हम उन साध्य या उद्देश्यों को स्पष्ट करें जो अहिंसा ने स्वयं के लिए निश्चित किए हैं। सिद्धान्त रूप में अहिंसा की स्वीकृति उसे एक युक्ति के रूप में मानने तथा अल्पकालिक उद्देश्य निर्धारित करने की अपेक्षा अधिक व्यापक है। अहिंसा एक उच्च एवं आधारभूत साध्य है जो दीर्घकालिक है। उदाहरणत: अहिंसा का एक लक्ष्य संघर्ष की स्थितियों में विरोधियों के प्रति सदैव सम्मान रखना है तो एक व्यक्ति ऐसा करके स्वतंत्र रूप से सफलता प्राप्त कर सकता है, भले ही उसके द्वारा निर्धारित अन्य सामाजिक या राजनैतिक उद्देश्यों में वह सफल न हो । अहिंसा का यदि एक लक्ष्य यह हो (स्पष्टतः है) कि विश्व में व्याप्त हिंसा को और अधिक नहीं बढ़ने देना है, इस लक्ष्य को भी व्यक्तिगत अन्य सफलत या असफलता से अलग रखकर प्राप्त किया जा सकता है। कभी अहिंसा का उद्देश्य संघर्षरत व्यक्तियों के चरित्र और विचार में परिवर्तन लाना भी हो सकता है।
यदि हम अहिंसा को जीवनशैली के रूप में मानें तो यह उस सीमा तक कार्य करती है जितना एक व्यक्ति अहिंसक जीवन जीता है और दैनन्दिन व्यवहार अहिंसक भावना से करता है। इस तरह की अहिंसा को सामाजिक एवं राजनैतिक परिवर्तनों के समान नहीं देखा जा सकता। इसे सम्पूर्ण जनसंख्या के लिए पूर्णरूपेण लागू भी नहीं किया जा सकता। हम ऐसी परिस्थितियों में जो हमारे नियंत्रण से बाहर की हैं, की अपेक्षा ऐसी परिस्थितियों में जो हमारे नियंत्रण में हैं, यदि हम अहिंसक तरीकों से दूसरों के साथ सम्मान पूर्वक कार्य कर पाते हैं तो यहां अहिंसा प्रभावकारी है।
उपर्युक्त समस्त चिन्तन का अभिप्राय मात्र यह दर्शाना है कि अहिंसा हिंसा से अधिक कार्यकारी है और हिंसा की अपेक्षा अहिंसा को प्राथमिकता देनी चाहिए। अहिंसा की नवीन व्याख्या
'मनुष्य में हिंसा का जन्म कैसे हुआ'-आचार्य महाप्रज्ञ ने इस प्रश्न के उत्तर में अहिंसा की नवीन व्यख्या प्रस्तुत की है। उनका मानना है-मनुष्य समाज में रहता है। सामाजिक जीवन का अर्थ है-सम्बन्धों का जीवन । सम्बन्ध उपयोगितावादी हैं । आपस में मिलकर रहने का अर्थ यह नहीं है कि वे अहिंसक हैं । मिलकर रहना व्यावहारिक अहिंसा का प्रयोग है। यह अहिंसा स्वार्थ
तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2002
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