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________________ कर्त्ता ठहराया जाता है और उसे उस कर्म का फल भोगना पड़ता है। भावों की ऐसी ही विचित्रता है । इसीलिए पाप में जाते मन को अंकुश लगाने की आवश्यकता है। मानसिक पाप भी उतना ही गंभीर पाप है। विचित्र हैं हिंसा के समीकरण द्रव्य - हिंसा और भाव-हिंसा के ऐसे-ऐसे समीकरण बनते हैं कि कई बार हिंसा और अहिंसा का गणित विचित्र - सा लगने लगता है। जैसे कहीं हिंसा एक व्यक्ति करता है और उससे होने वाला पाप-बंध अनेकों को होता है या हिंसात्मक कार्य अनेक लोग मिलकर करते हैं किंतु फल एक ही व्यक्ति को भोगना पड़ता है। इस गणित के कुछ उदाहरण यहां प्रस्तुत करेंगेकरे एक : भोगें अनेक कुछ लोग पशु-पक्षियों को लेकर क्रूर खेलों का प्रदर्शन करते हैं। इन खेलों में अनेक पशु-पक्षियों को कष्ट होता है, वे मर भी जाते हैं। खेल का आयोजन या उन्हें दिखाने का कार्य लोग करते हैं वे तो पाप के भागी होते ही हैं परन्तु हजारों लोग जो उन खेलों को देखने जाते हैं, उन्हें पैसे देकर प्रोत्साहित करते हैं और उनकी प्रशंसा - अनुमोदना करते हैं, वे सब भी उस हिंसा के भागीदार होते हैं। यहां करने वाला एक होता है या कुछेक होते हैं और उसका फल भोगने वाले अनेक या बहुत होते हैं । करें अनेक : भोगे एक एक राज्य का स्वामी दूसरे राज्य पर आक्रमण करके उसके साथ युद्ध छेड़ देता है। हजारों सैनिक एक-दूसरे को मारते हुए मर जाते हैं या कोई दुष्ट व्यक्ति प्राणी हिंसा का कोई गुप्त षड्यंत्र करके उसमें अनजान लोगों का सहयोग लेकर अनेक लोगों के प्राण हर लेता है। ऐसी घटनाओं में हिंसा का कारण सिर्फ युद्ध छेड़ने वाला या षड्यंत्र करने वाला व्यक्ति ही है। वही वास्तव में हिंसक है और उस पूरी हिंसा का जिम्मेदार है। सैनिक या अन्य सहायक लोग तो केवल अपनी आजीविका के लिए शस्त्र चलाते हैं या अनजाने में उस कार्य में शामिल हो गये होते हैं। उन्होंने ऐसी नौकरी चुनी या मजबूरी में उन्हें ऐसी नौकरी स्वीकार करनी पड़ी अथवा उस काम में सहायक होने के पहले उन्होंने उस कार्य के परिणाम की खोजबीन नहीं की। उतनी दूर तक तो वे उसके फल के भागीदार अवश्य होंगे, परन्तु यहां करने वाले अनेक होते हुए भी उस हिंसा का सर्वाधिक कुफल पाने वाला तो उसका संयोजक ही होता है। सभी सहायकों को एक बराबर पाप नहीं लगता, सबको अपने-अपने भावों के अनुरूप कर्म का फल मिलता है । करें थोड़ा : भोगे बहुत हिंसा के तीव्र परिणामों में यदि हिंसा अल्प भी होगी तो भी उस हिंसा का तीव्र फल भोगना पड़ेगा। किसी के परिणाम तो अधिक तीव्र-हिंसा के नहीं हैं, परन्तु अचानक उसके हाथ से हिंसा अधिक हो गई, ऐसी स्थिति में अधिक हिंसा होते हुए भी फल अल्प ही भोगना पड़ेगा । कभी-कभी ऐसा हुआ है कि बालक की आदतें सुधारने के लिए मां ने उसे एक-दो चांटें मारे तुलसी प्रज्ञा अंक 115 10 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524610
Book TitleTulsi Prajna 2002 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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