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शान्त-सहवास में अनेकान्त की भूमिका
-साध्वी आरोग्यश्री
शिष्य ने अपने गुरु से जिज्ञासा करते हुए कहा, भंते! क्या मैं समुदाय में रहकर शांत-सहवास को प्राप्त कर सकता हूं? क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति को शांति अभिष्ट है, सुख प्रिय है। कोई भी अशांति का जीवन जीना नहीं चाहता | गुरु ने समाधान के स्वरों में शिष्य से कहा- वत्स ! तुम समुदाय में रहकर भी शांत सहवास को प्राप्त कर सकते हो। किन्तु अशांत सहवास के कुछ हेतु हैं, उनका निराकरण करके ही शांत-सहवास को प्राप्त कर सकते हो। सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन में शांति खण्डित होने के अनेक हेतु हैं, किन्तु कुछ तत्त्व प्रमुख हैं । जैसे• निरपेक्ष व्यवहार • सहिष्णुता का अभाव • आग्रही मनोवृति • परदोष दर्शन, इन समस्याओ के निराकरण का मार्ग है- अनेकान्त।
अनेकान्त जैन दर्शन का प्राण-तत्त्व है। इस सिद्धान्त के प्रबल प्रवक्ता हैं भगवान महावीर | भगवान महावीर का यह सिद्धान्त पूर्ण वैज्ञानिक एवं सार्वभौमिक है। एक साथ रहने वाले अनेक विरोधी धर्मों के समन्वय का मार्ग है- अनेकान्त । अनेकान्त ऐसा तत्त्व है जो विवादास्पद प्रसंग में भी सामंजस्य स्थापित करने वाली मनोवृत्ति को पनपने का अवसर देता है। प्रश्न उपस्थित होता है, क्या अनेकान्त जीवन का दर्शन बन सकता है? क्या अनेकान्त के द्वारा सम-सामयिक समस्याओं का समाधान खोजा जा सकता है? अनेकान्त वह धुरी है जहां जीवन के व्यावहारिक पक्ष से जुड़ी समस्याओं का एवं राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान अनेकान्त के आलोक में प्राप्त किया जा सकता है। अनेकान्त साधना का महान् सूत्र है। जीवन का समग्र दर्शन है।
सापेक्षव्यवहार, सहयोग, सहिष्णुता, विनम्रता, सेवाभावना, प्रमोद भावना
आदि तत्त्व शांत सहवास के घटक तत्त्व है । जिस परिवार, समाज या संस्था में ये तुलसी प्रज्ञा जुलाई-दिसम्बर, 2001
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