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महावीर का अनेकान्त : सामाजिक विमर्श
-शुभू पटवा
अनेकांत और स्याद्वाद जैसे दार्शनिक सिद्धांतों के प्रणेता श्रमण भगवान महावीर ने कोई छब्बीस सौ वर्ष पूर्व चैत्र शुक्ला त्रयोदशी (30 मार्च, ईस्वी पूर्व 599) की मध्यरात्रि को जन्म लिया। जहां यह बालक जन्मा उस जनपद का नाम विदेह और नगर का नाम क्षत्रियकुण्ड (तत्कालीन वज्जि गणराज्य, जिसकी राजधानी वैशाली थी) था। पिता थे महाराज सिद्धार्थ और मां का नाम त्रिशला था। जन्म के बारह दिन बाद बालक का नामकरण हुआ। नाम रखा गया वर्द्धमान । राजकुमार वर्द्धमान जब युवा हो गए तो कलिंग नरेश जितशत्रु की पुत्री यशोदा के साथ विवाह-प्रस्ताव महाराज सिद्धार्थ के पास आया । रानी त्रिशला और सिद्धार्थ ने यह प्रस्ताव राजकुमार वर्द्धमान के सम्मुख रखा । श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार माता-पिता के स्नेह के सामने वर्द्धमान झुक गए। उन्होंने विवाह कर लिया । दिगम्बर परम्परा के अनुसार वर्द्धमान ने विवाह का प्रस्ताव ठुकरा दिया। वे जीवन-भर ब्रह्मचारी रहें ।' माता-पिता के प्रति राजकुमार वर्द्धमान का प्रगाढ़ स्नेह था। इसीलिए वर्द्धमान ने संकल्प कर लिया कि अपने माता-पिता के जीवनकाल में वे मुनि नहीं बनेंगे। इसी निश्चय के चलते वर्द्धमान ने 28-30 वर्ष की वय के बाद ही मुनि-दीक्षा ग्रहण की | माता-पिता की मृत्यु के दो वर्ष बाद ही वर्द्धमान के गृह-त्याग (अभिनिष्क्रमण) का उल्लेख है, पर दो वर्ष तक घर में रहते हुए भी वे कठोर साधना में रत रहे। दो वर्ष की इस अवधि में अहिंसा, सत्य और ब्रह्मचर्य के सूत्रों को बहुत बारीकी के साथ उन्होंने पकड़ा । अहिंसा की साधना में जीव-मात्र के प्रति मैत्री भाव, सत्य-साधना के माध्यम से अनासक्ति का विकास और ब्रह्मचर्य की साधना
से उन्होंने अस्वाद का अभ्यास किया। तुलसी प्रज्ञा जुलाई-दिसम्बर, 2001
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