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अनेकान्त पुरुषार्थ और पराक्रम का सूत्र देता है। वह अनन्त सम्भावनाओं को स्वीकार करता है। सम्भावनाओं का संसार बहुत बड़ा है। नेपोलियन बोनापार्ट कहता था- "मेरे शब्द कोष में असम्भव जैसा शब्द नहीं है ।" यही अनेकान्त की तत्त्वदृष्टि है। अवस्था के परिवर्तन के साथ-साथ सारी असम्भव बातें सम्भव हो सकती हैं। विज्ञान की खोज इस दृष्टि को निरन्तर उजागर कर रही है। खोज की गति अनन्त है यह आशावादी दृष्टिकोण है।
अनेकान्त कहता है, प्रशंसा इष्ट है तो निन्दा के लिए तैयार रहो । सुख को चाहो तो दुःख के लिए तैयार रहो । चाहो तो दोनों को चाहो अन्यथा दोनों को मत चाहो । यह है समता । द्वन्द्व की दुनिया में एक मत से काम नहीं चलता । अनन्त सम्भावनाओं के साथ अनेकान्त प्रत्येक साधन की सीमा का बोध कराता है। सभी नियम सापेक्ष होते हैं। किसी भी नियम का एक छत्र शासन नहीं होता । धर्म और ध्यान भी सब समस्याओं का समाधान नहीं कर सकते ।
आज आवश्यकता है अनेकान्त के सूत्रों को धार्मिक क्षेत्र में, राजनैतिक क्षेत्र में, पारिवारिक क्षेत्र में, सामाजिक क्षेत्र में और अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्धों के क्षेत्र में प्रयोग करने की ।
धार्मिक क्षेत्र में
इतिहास बताता है कि धार्मिक असहिष्णुता ने विश्व में जघन्य दुष्कृत्य कराये । शान्ति प्रदाता धर्म अशान्ति का कारण बना। विश्व के प्रत्येक धर्माचार्य ने अपने युग की तात्कालिक परिस्थितियों से प्रभावित होकर अपने सिद्धान्तों और साधना के नियमों का प्रतिपादन किया। यह स्वाभाविक था । भूल यह हुई कि हमने इस काल विशेष और परिस्थिति विशेष धर्म व्याख्या को कट्टरता से सदा सदा के लिए पूर्ण सत्य मान लिया। मनुष्य की अपने धर्माचार्य के प्रति ममता और उसके मन में व्याप्त आग्रह और अहंकार ने उसे साम्प्रदायिक बना दिया। आज हम इन सम्प्रदायों को समाप्त नहीं कर सकते । अनेकान्त विचार दृष्टि इनकी एकता का प्रयास भी नहीं करती। उसका सूत्र हो सकता है— सर्व धर्म समभाव । सब सम्प्रदायों का आदर करो और उन्हें नैतिकता की व्यापक पूर्णता में उंड़ेलने का प्रयास करो मैत्री के साथ | Secularism का पाठ अनेकान्त का पाठ है— धर्म निरपेक्ष होकर नहीं, सम्प्रदाय सापेक्ष होकर। आज हमें अनेकान्त दृष्टि से Secularism को समझना होगा। राज्य किसी एक धार्मिक सम्प्रदाय को प्रश्रय नहीं देगा या अवहेलना नहीं करेगा किन्तु उनके समन्वय द्वारा धर्म की, सत्य की स्थापना अवश्य करेगा ।
सभी धार्मिक मान्यताओं के मूलभूत सिद्धान्तों में एकता की लहर दिखाई दे सकती है, अनेकान्त दृष्टि से । स्वामी विवेकानन्द ने कहा था – “...the religions of the world are not contradictory or antagonistic. They are but various phases of one eternal religion. That one eternon religion is applied the opinions of minds and various races. There never was my religion or yours, my national religion or your
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तुलसी प्रज्ञा अंक 113 114
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