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चेतन से बना है जैसा कि Rationalists कहते हैं। दोनों अनादि हैं, अनन्त हैं, दोनों स्वतन्त्र पर सापेक्ष है । आवश्यक है दोनों का समन्वय, दोनों का सामंजस्य।
अनेकान्त विचारधारा की अभिव्यक्ति हुई स्याद्वाद की सप्तभंगी में। कथन के पहले स्यात् शब्द का प्रयोग जिससे कि यह गलती न हो कि वह कथन ही पूर्ण सत्य है। Logic की भाषा में सात तरह के कथन हो सकते हैं--'स्यात् है, स्यात् नहीं है, स्यात् अवक्तव्य है, स्यात् है भी और नहीं भी, स्यात् है और अवक्तव्य भी, स्यात् नहीं है और अवक्तव्य भी, तथा स्यात् है, नहीं है और अवक्तव्य भी।' एक उदाहरण से इसे समझ सकते हैं—जैसे, हम एक घड़े को देखकर कहते हैं 'यह घड़ा है।' स्याद्वादी कहते है कि इसके पहले 'स्यात्' शब्द लगाओ और कहो 'स्यात् यह घड़ा है। क्योंकि यह घड़ा मिट्टी भी है। यह घड़ा पहले एक कटोरा था। यह घड़ा बाद में चूर-चूर होकर कचरा भी बन सकता है। यह घड़ा, कलम नहीं है। इस प्रकार अनेक आंशिक सत्य कथन कहे जा सकते हैं सापेक्ष दृष्टि से।
___Logic की इस सप्तभंगी या दार्शनिक मीमांसा में ज्यादा न जाकर आज के परिपेक्ष्य में इस सिद्धान्त की उपयोगिता के बारे में उसके फलित व्यावहारिक सिद्धान्तों के बारे में जानना अधिक प्रासंगिक होगा।
अनेकान्त के अनेक महत्वपूर्ण प्रयोग हैं—सह-अस्तित्व Co-existence, समन्वय Co-ordination, सन्तुलन equilibrium, समता objectivity या तटस्थता पुरुषार्थ effort. अनेकान्त की मान्यता है कि विरोधी युगल साथ रहते हैं। संघर्ष प्रकृति का नियम नहीं है। वह आरोपित है। प्रकाश और अंधकार का सहअस्तित्व है। दिन और रात का सहअस्तित्व है। सर्दी और गर्मी का सहअस्तित्व है। मूल और फूल का सहअस्तित्व है। सहअस्तित्व स्वयंभू नियम है। विरोधी होना स्वाभाविक है, प्राकृतिक है। विरोधी रूपों का, विरोधी विचारों का साथ रहना सत्य के विभिन्न अंशों का साथ रहना है। पक्ष और प्रतिपक्ष स्वाभाविक है। अनेकान्त का सूत्र है- सह-प्रतिपक्षी । केवल युगल ही प्राप्त नहीं है। विरोधी युगल होने चाहिए । ज्ञान है तो अज्ञान है। सुख है तो दुःख है। जीवन है तो मृत्यु है। शुभ है तो अशुभ है। लाभ है तो नुकसान है। हर वस्तु के तीन तत्त्व हैं- सृष्टि, प्रलय और अस्तित्व । एक ही वस्तु में तीनों तत्त्व साथ-साथ चलते हैं। चेतन और अचेतन में न सर्वथा विरोध है और न सर्वथा अविरोध है । यदि वे सर्वथा विरोधी होते तो आत्मा अलग होती और शरीर अलग होता। पर दोनों जुड़े हुए हैं। अनेकान्त ने सन्तुलन की स्पष्ट व्याख्या की है। तराजू का पलड़ा एक ओर न झुके । दोनों पलड़े बराबर है- एक पलड़ा है नियत का, दूसरा अनियत का । पिता कहता है नियन्त्रण होना चाहिए। पुत्र कहता है नियन्त्रण नहीं होना चाहिए। दोनों एकांगी हैं। दोनों में सन्तुलन आवश्यक है। इसी प्रकार अनेकान्तदृष्टि वाला समता रखता है। निर्णय करते समय तटस्थ रहता है। प्रत्येक निर्णय के चार घटक हैं-द्रव्य, क्षेत्र, काल, और भाव । इन चारों के आधार पर निर्णय बदलता रहता है। हर निर्णय भी बदलेगा। सापेक्ष निर्णय सही निर्णय है।
तुलसी प्रज्ञा जुलाई-दिसम्बर, 20016
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