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भगवान महावीर और अनेकान्तवाद
-डॉ. अशोक कुमार जैन
संसार के महापुरुषों में तीर्थंकर महावीर का अप्रतिम स्थान है। वे धर्म प्रवर्तक ही नहीं, अपितु, महान लोकनायक, धर्मनायक, क्रान्तिकारी सुधारक, सच्चे पथप्रदर्शक और विश्वबन्धुत्व के प्रतीक थे। उनके कैवल्यालोक से मानव हृदयों का अज्ञानरूपी अंधकार छिन्न हो गया और नाशोन्मुख मानवता को त्राण प्राप्त हुआ।
महावीर की साधना वीतरागता की साधना थी। उन्होंने विकृतियों से मुक्त होकर शुद्ध चैतन्य-स्वरूप परमात्म-तत्व को प्राप्त किया और विश्व को समाजवाद, साम्यवाद, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का प्रशस्त मार्ग दिखाकर अमरत्व का सन्देश दिया। आचार्य समन्तभद्र ने भगवान महावीर के तीर्थ को सर्वोदय तीर्थ की संज्ञा से अभिहित करते हुए लिखा है
सर्वान्तवत्तद्गुणमुख्यकल्पं सर्वान्तशून्यं च मिथोऽनपेक्षम् | सर्वापदामन्तकरं निरन्तं सर्वोदयं तीर्थमिदं तवैव।'
हे तीर्थंकर महावीर ! आपका तीर्थ सर्वान्तवान है और गौण तथा मुख्य की कल्पना को साथ में लिये हुए है। जो शासन-वाक्य धर्मों में पारस्परिक अपेक्षा का प्रतिपादन नहीं करता, वह सर्व धर्मों से शून्य है। अतः आपका ही यह शासन तीर्थ सर्व दुःखों का अन्त करने वाला है, यही निरन्त है और सब प्राणियों के अभ्युदय का कारण तथा आत्मा के पूर्ण अभ्युदय का साधक ऐसा सर्वोदय तीर्थ है।
सर्वोदय का आधार समता है। भगवान् महावीर के दर्शन की प्रमुख विशेषतायें हैं आचार में अहिंसा, विचार में अनेकान्त, वाणी में स्याद्वाद और समाज में
अपरिग्रह। तुलसी प्रज्ञा जुलाई-दिसम्बर, 20016
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