________________
कहे गये अनेकान्त से जुड़े अर्थ से भिन्न है, यह ध्यान रखना चाहिए। मेरा मूल वक्तव्य यह है कि अनेकान्तवाद एक ऐसा मतवाद है जो कि हमें जीवन में सहनशीलता, दूसरे के मतवाद को सम्मान देना और हर मतवाद के पीछे एक सच्चाई छुपी हई रहती है, यह मानने के लिए हमें मानसिक रूप से तैयार करता है। लेकिन जीवन में कठिनाई का सामना करते हए अनेकान्तवाद को अंध-भक्ति के साथ मान लेने में कोई फायदा नहीं होगा। अनेकान्तवाद हमें और कई सम्भावनाओं के बारे में सचेतन और श्रद्धाशील बनाता तो है लेकिन उनमें से कौनसे विकल्प को चुना जाए, वह व्यक्ति विशेष के ऊपर निर्भर करता है।
___ जैसा कि मैंने कहा, अहिंसा सबसे कम शक्ति के प्रयोग की वह नीति है जिससे समाज और परिवेश की स्थितावस्था, साम्य और पारस्परिक तालमेल यानी सुसामंजस्य की जिम्मेदारी मिलती है। लेकिन सबसे कम शक्ति के प्रयोग की कसौटी क्या है ? यह हर व्यक्ति को अपने अपने क्षेत्र में खुद ही निर्धारण करनी पड़ेगी। इसी को मैंने अधिकृत पसंद Authentic Choice कहा है।
अनेकान्तवाद हमें Authentic होने में मदद तो जरूर कर सकता है लेकिन संकट की स्थिति में हमारी Authentic Choice क्या होगी, यह नहीं बतला सकता है। मेरे ख्याल में अनेकान्तवाद के प्रति श्रद्धा प्रकट करने का सबसे अच्छा उपाय एक ही है कि हम अनेकान्त का सहारा लेते हुए सत्यता के साथ अपना-अपना Authentic Choice ठीक रखें।
__ अनेकान्तवाद सहनशीलता और दूसरों से मिले-जुले सद्भाव से रहने की मानसिकता को एक आधारशिला होने के नाते न्यूनतम हस्तक्षेप Minimum interference के अर्थ में अहिंसा का एक वातावरण तैयार भी करता है। जिससे एकतरफ Adaptive Flexibility (अपनी-अपनी बातों पर खड़ा रहने की बजाय दूसरों की बातों का सम्मान करते हुए जीने की मानसिकता) पैदा हो जाती है और दूसरी तरफ इसी के कारण Marginalization of Recalcitrant Views जो कि आज कल गणतंत्र की एक बहुत बड़ी कमजोरी है, वर्जित हो जाती है और साथ-साथ आदमी से आदमी के जुड़े रहने की जो शक्ति है The Strength of man to man bonding और भी गहराई की तरफ ले जा सकती है।
दर्शन विभाग जादवपुर विश्वविद्यालय कोलकता-700012
राष्ट्रीय परिसंवाद में दिये गये भाषण का सार-संक्षेप।
38
-
तुलसी प्रज्ञा अंक 113-114
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org